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________________ * जैन जगती SONGI BA क * वर्तमान खण्ड संतान-पोषण भी तुम्हें करना तनिक आता नहीं ! जब मातृ तुमको क्यों कहें, तुम शत्रु हो माता नहीं ! हे नाथ ! माता इस तरह मातृत्व यदि खोने लगें; सन्तान बोलो किस तरह गुणवान फिर होने लगें ।। २१५ ।। नर का नारी पर अत्याचार नर ! नारियों के इस पतन के आप जिम्मेवार हो; तुम कोमलांगी नारियों पर हाय ! पर्वत-भार हो । अधिकार इन पर कर लिया, हा ! स्वत्व इनका हर लिया ! रसचार करने के लिये उद्यत इन्हें फिर कर लिया !! ।। २१६ ।। रमणी कहीं हैं महल की, पर्दानशीना हैं कहीं, हैं घालती गोमय कहीं, व्यंजन बनाती हैं कहीं; व्ययशील इनका गेह में इस भाँति जोवन हो रहा ! मल-मूत्र धोना रात दिन कर्तव्य इनका हो रहा !! | २१७ ॥ कहला रहीं अर्धाङ्गिनी, पर हा ! न पद सम मान है ! दुत्कार; डण्डे मारना तो हा ! इन्हें वरदान है ! कुल्टा, कुचाली, रॉड, रण्डी नाम इनके पड़ रहे ! समभाग था जिनका कभी-यों मान उनके बढ़ रहे !!! || २१८ || श्रुति, नाक इनका काटना ! इनको छड़ी से दागना ! देना न भोजन मास भर ! अनचोर घर से काढ़ना ! माता-पिता को बोलना अपशब्द इनके हाय ! रे ! आसान है ये काम सब ! भारत न अब वह हाय ! रे !! ॥ २१६ ॥ १२५
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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