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________________ मनोविज्ञान गधमवेदन का अनुभव नासिका द्वारा प्राप्त होता है। जब वायु के माय रासायनिक गंध कण नासिका में प्रविष्ट होते है तो वह घ्राण के रोम कृपो को उत्तेजित करते है। उनकी उत्तेजना से प्रात्मा को प्राण अनुभव होता है । यदि नासिका के दोनो पुट बद कर दिये जाए, तो गव की अनुभूति नही होती, इससे साफ जाहिर है कि आत्मा को गध सवेदन घाण द्वारा ही होता है । यद्यपि गवसंवेदन अनेक प्रकार के होते है तथापि उन सब का समावेश सुगध और दुर्गध में ही हो जाता है। रस का सवेदन रसना से होता है। रसना या जीभ तरल पदार्थ अथवा लार-मिश्रित पदार्थ के सम्पक से जव उत्तेजित हो उठती है, तभी वह अपने ज्ञानतनुप्रो द्वारा रस-सवेदना उत्पन्न करती है। रस पाच प्रकार का है । अम्ल, मधुर, कटुक, कषायला और तीक्ष्ण । अतएव रस-मवेदन भी पाच ही प्रकार का माना गया है । स्पर्शानुभूति मे स्पर्शन इन्द्रिय निमित्त होती है स्पर्शेन्द्रिय का द्रव्यरूप समग्र त्वचा है । आठ प्रकार के स्पर्ग ही इस इन्द्रिय के विषय है, जो इस प्रकार है--उष्ण, रूक्ष गीत, चिक्कण, हल्का, भारी, कर्कश और कोमल । मन मानव जीवन मे मन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। आत्मा के उत्थान और पतन का भी वह प्रधान कारण है। इसीलिए विभिन्न आध्यात्मिक परम्पराए भी एक स्वर से मनोविजय की अनिवार्य आवश्यकता उद्घोषित करती है, और साथ ही मनोविजय को दुश्शक्य कार्य स्वीकार करती है । गीता में श्रीकृष्ण स्वीकार करते है कि मन बडा वलशाली है, और जैसे हवा पर काबू पाना सरल नही, उसी प्रकार मन पर काबू पाना भी हसी-खेल नही । उत्तराध्ययन, अध्याय २३, गाथा ५८ मे इन्द्रभूति गौतम जैसे महाश्रमण भी मन को साहसी, भयानक और दुष्ट अश्व के समान बतलाकर वही बात कहते है । वास्तव में मन बडा जबर्दस्त है । वह बडे-बडे योगियो को भी ऐसा नाच नचाता है, जैसे मदारी बन्दर को। कितने ही साधक मन पर नियत्रण पाने के लिए अरण्यवास अगीकार करते है, परन्तु मन क्षण भर मे उन्हे विलासमय राजप्रासाद मे लाकर खडा कर देता है, और अरण्य मे साधक का सिर्फ कलेवर ही रह जाता है । कोई-कोई साधक उसे जीतने के लिए कटकशय्या अगीकार करते है, परन्तु मन उन्हे सुखद और सुकोमल सेज पर पौढा देता है । कटक
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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