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________________ इस पुस्तक में किसी प्रकार की साम्प्रदायिकता न आवे और जैन सिद्धान्तों का सर्वमान्य परिचय मिले, यही दृष्टि रक्खी गई है। जैनों को अपने धर्म का परिचय और ज्ञान हो और अजैनो को भी जैन धर्म की जानकारी मिले यही इस 'जैन धर्म' पुस्तक का ध्येय है। 'जैनधर्म' का अधिक से अधिक प्रचार हो इस दृष्टि से इस पुस्तक का अनुवाद गुजराती, मराठी, तामिल आदि भारतीय भाषाओं में तथा अंग्रेजी, जर्मनी, फ्रेन्च आदि विदेशी भापाओ में भी प्रकाशित करने की हमारी भावना है। पुस्तक-सम्पादन में प्रसिद्ध पंडित श्री शोभाचन्द्र जी भारिल्ल ने महत्त्वपूर्ण योग दे कर हमारी चिरकालीन महान् अभिलाषा पूर्ण की है। एतदर्य वे धन्यवाद के पात्र है। हम श्री अनंतगयनम् आयंगर, अध्यक्ष लोक सभा के अत्यंत आभारी हैं कि जिन्होंने अत्यधिक कार्य ध्यस्तता में भी इस अन्य की प्रस्तावना लिखने की कृपा की। प्रस्तावना में जैन धर्म के प्रति उनकी उदाराशयता हमारे लिये स्पृहणीय है। इनके अतिरिक्त श्री शान्ति लाल वनमाली सेठ,श्री भूपराज जैन एम० ए०, श्री जिनेन्द्र मानव, श्री सोमनाथ जोशी शास्त्री प्रभाकर का प्रूफ संशोधन आदि का समय-समय पर दिया गया सहयोग विस्मृत नहीं किया जा सकता।। यद्यपि अशुद्धियों की ओर से पर्याप्त सतर्क रहा गया, फिर भी कई त्रुटियों का रहना संभव है। यदि पाठक अशुद्धियां सूचित करने का कष्ट करेंगे तो आगामी संस्करण में परिष्कृत की जा सकेंगी। विनीत आनन्दराज सुराणा (भूतपूर्व एम एल.ए.) विजयादशमी (आसोज १० १०) जसवंतराज मेहता, एम०पी०, वोर सं० २४८४ वि० सं० २०१५ ।। सौभाग्यमल जैन, (भूतपूर्व वित्त मंत्री) ता० २१-१०-५८ धीरजलाल केशवलाल तुरखिया, खीमचन्द मगनलाल वोरा मंत्री अ० भा० श्वे० स्था० जैन कांफ्रेंस, नई दिल्ली
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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