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________________ प्रकाशकीय अहिंसा आज विश्व-धर्म है। युद्ध एवं विनाश ने अहिंसा के महत्व को जगत् के सामने धौली-धूप की तरह स्पष्ट कर दिया है। व्यक्ति एवं समष्टि को सुरक्षा, शोषणहीन समाज की कल्पना, न्याय व समानता के मानवीय सिद्धान्त अहिंसा के बिना कभी साकार नहीं हो सकते। गाधी जी के अवतरण के बाद संसार ने अहिंसा को खोज प्रारंभ की है। किन्तु जैन-धर्म अहिंसा का संदेश और साधना को लिए प्राचीनकाल से ही मानव जाति की सेवा कर रहा है। तथापि खेद है कि जैन धर्म के उदार सिद्धान्तो व मौलिक मान्यताओं तथा दिव्य धारणाओं और अलौकिक गढ़ विद्याओ का लोकव्यापी प्रचार न किया जा सका। यही कारण है कि स्कूल-कालेज व विश्व-विद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकों में जैन धर्म को लेकर अनेक प्रकार की भ्रान्त धारणाएं प्रसारित की गई है। भारतवर्ष तो अहिंसा प्रधान है ही; परन्तु आज समस्त विश्व अहिंसा और शान्ति की ओर झांक रहा है, जैनधर्म में अहिंसा का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप बताया गया है, अन्यत्र कहीं भी अहिंसा का ऐसा सूक्ष्म और विराट स्वरूप नहीं मिलेगा। अतः अ० भा० श्वे० स्थानकवासी जैन कांफ्रेंस ने जैन धर्म के मौलिक सिद्धान्तों के परिचय के रूप में एक सर्वमान्य पुस्तक प्रकाशित करने के सम्बन्ध में प्रस्ताव पारित किया था। उसी के अनुसार आज “जैन धर्म" पुस्तक को प्रकाशित कर पाठकों को समर्पित करते हुए हमें अपार हर्ष हो रहा है। पुस्तक के लेखक है विश्व-धर्म सम्मेलन के प्रेरक प्रसिद्ध संत मुनि सुशीलकुमार जी । सहकार के रूप में आत्मार्थी मोहन ऋषि म० तथा महासती उज्ज्वलकुमारी जी, उन्ही के द्वारा लिखित जैन धर्म पुस्तक को इसमें सहायता ली गई है। एतदर्थ हम अपनी तथा अ० भा० श्वे० स्था जैन कांफ्रेंस की ओर से उनके आभारी है। मुनि सुशील कुमार जी ने अत्यन्त कार्यव्यस्त होने पर भी जो पुस्तक लेखन व संशोधन सम्बन्धी योग दिया है वह सराहनीय है।
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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