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________________ कहाँ क्या ? १. मंगलाचरण १. नमस्कार, २. मगलपाठ । २. जैनधर्म का स्वरूप ३. अतीत की झलक ९-४८ १. जैन धर्म का अनादित्व, २. भगवान् ऋषभदेव, ३. उपनिषदो मे जैन धर्म, ४ पुराणो मे जैन धर्म, ५. जैन धर्म के तीर्थकर, ६. भगवान् नेमिनाथ, ७. भगवान् पार्श्वनाथ, ८. भगवान् महावीर, ६. भगवान् महावीर का उदार सघ, १०. महावीर की देन, ११. तत्कालीन धर्म प्रवर्तक, १२. गोशालक, १३. महावीर और बुद्ध, १४. महावीर और बुद्ध मे समानता और विभिन्नता, १५. दोनो सस्कृतियो की मूल प्रेरणा एक, १६. सात निन्हव और अन्य विपक्षी, १७ भगवान् द्वारा अचेलत्व की प्रशसा, १८. वैदिक एव जैन सस्कृतियाँ, समन्वयात्मक वृत्ति में परिपूर्ण, १६. अन्य धर्मो पर श्रमण-परम्परा की छाप, २०. प्राचीन काल मे श्रमण-सस्था का कप्ट-सहन, २१. श्रमण और प्रचार, २२. महावीर और भारत की तत्कालीन अवस्था, २३. महावीर के साधु, सेवक-सेना, २४. लोक-भाषा का प्रश्रय, २५. महावीर की परम्परा की रक्षा, २६. विश्व के नाम महावीर का सन्देश, २७. शिष्य परम्परा । ४. मुक्ति-मार्ग ४९-६० १. मुक्ति की परिभाषा, २. सम्यग्दर्शन, ३. सम्यग्दर्शन के आठ अग--(नि शकित, निकाक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढ़ दृष्टित्व, उपवृहण, स्थिरी-करण, वात्सल्य, प्रभावना) ।
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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