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________________ APA प्रात्म-निवेदन जैनागमों के आधार पर, जैन धर्म के सम्बन्ध में सही जानकारी जगत् के विद्वानों, धर्म जिज्ञासुओ व विद्यार्थियो के सामने रखने की मेरे मन में बहुत देर से माकांक्षा रही है। अ० भा० श्वे० स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस ने ठीक इसी आशय का एक प्रस्ताव पास कर इस प्रकार की जैन धर्म पर समत्वयात्मक पुस्तक लिखने का अनुरोध मेरे से व आत्मार्थी मोहन ऋषि जी म०एवं महासती उज्ज्वल कुमारी जी से किया था। यह मेरे मन की बात थी। मैने बम्बई के निकट लोनावाला जैन बन्धुओं की प्रार्थना स्वीकार कर पार्वतीय सुरम्य वातावरण में बहुत शीघ्र ही सारा मसविदा तैयार कर लिया। चार वर्ष के बाद वह पुस्तक आज पाठकों के सामने है। महासती जी द्वारा प्रेषित पुस्तक का सहकार एवं जैन समाज के लन्ध प्रतिष्ठ विद्वान् श्री शोभाचन्द्र जी भारिल्ल का तम्पादन इस पुस्तक के संवर्धन में सहयोगी रहा है। मेरे जैन धर्म पुस्तक लिखने का आशय श्वेताम्बर एवं दिगम्बर आगमों के माधार पर जैन समाज की धार्मिक एकता को प्रोत्साहन देना है। और साथ ही साय जैन धर्म के संबंध में फैलाई गयी भ्रान्तियो को दूर कर जैन धर्म की गहराइयों की ओर भी संसार का ध्यान आकर्षित करना है। पुस्तक में १३ अध्याय है, जैन इतिहास, जैन तत्वज्ञान, जैन समाज, जैन सभ्यता और जैनाचार पद्धति आदि सभी का परिचय इस पुस्तक में शास्त्रीय आधार पर देने का प्रयत्न किया गया है। भूलें होना स्वाभाविक है, जैन धर्म जैसे अगाध तत्वज्ञान एवं विशाल वाङमय से परिपूर्ण धर्म का परिचय देना मेरे जैसे अनभिज्ञ गीतार्थी के लिए अत्यन्त कठिन है, किन्तु श्रद्धावश यह मेरी प्रेमाञ्जलि है। ___अन्त में मै जैन समाज के कर्मठ सेवी भगवान महावीर के अनन्य उपासक श्री कुन्दनमल जी फिरोदिया, स्व० श्री विनय चन्द भाई जौहरी, आनन्दराज सुराणा एवं स्व० श्री जगन्नाथ जी जैनी को भूल नहीं सकता जिनकी उत्साह भरी प्रेरणाएं पुस्तक लेखन में मुझे उल्लसित करती रही है । --मुनि सुशील कुमार
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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