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________________ - ] जैन दर्शन मैं प्रमाण मोमोसां (३) अविरुद्ध-कारण-उपलब्धि : साध्य - वर्पा होगी । हेतु — क्योंकि विशिष्ट प्रकार के बादल मंडरा रहे हैं । arcat की विशिष्ट प्रकारता वर्षा का कारण है और उसका विरोधी नही है | (४) अविरुद्ध - पूर्व चर उपलब्धि : साध्य - एक मूहर्त्त के बाद तिष्य नक्षत्र का उदय होगा । हेतु — क्योकि पुनर्वसु का उदय हो चुका है। 'पुनर्वसु का उदय' यह हेतु 'तिष्योदय' साध्य का पूर्वचर है और उसका विरोधी नहीं है। - (५) अविरुद्ध-उत्तरचर उपलब्धि : साध्य - एक मूहर्त्त पहले पूर्वा फाल्गुनी का उदय हुआ था । हेतु — क्योंकि उत्तर- फाल्गुनी का उदय हो चुका है । उत्तर- फाल्गुनी का उदय पूर्वा फाल्गुनी के उदय का निश्चित उत्तरवर्ती है । (६) विरुद्ध सहचर - उपलब्धि :-- साध्य - इस आम में रूप विशेष है । हेतु — क्योकि रस विशेष आस्वाद्यमान है । यहाॅ रस (हेतु ) रूप ( साध्य ) का नित्य सहचारी है। निषेध-साधक उपलब्धि हेतु साध्य से विरुद्ध होने के कारण जो हेतु उसके अभाव को सिद्ध करता है, वह विरुद्धोपलब्धि कहलाता है । विरुद्धोपलब्धि के सात प्रकार हैं : (१) स्वभाव - विरुद्ध - उपलब्धि :साध्य - सर्वथा एकान्त नही है । हेतु — क्योंकि अनेकान्त उपलब्ध हो रहा है । अनेकान्त - एकान्त स्वभाव के विरुद्ध है । (२) विरुद्ध व्याप्य - उपलब्धि :-- साध्य - - इस पुरुष का तत्त्व में निश्चय नहीं है ।
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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