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________________ जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा अनुमान 1 40 - स्वार्थ पक्ष हेतु पक्ष हेतु पक्ष हेतु दृष्टान्त उपनय निगमन (तीव्र बुद्धि श्रोता) (मंद बुद्धि श्रोता) हेतु के प्रकार हेतु के दो प्रकार होते हैं -(१) उपलब्धि (२) अनुपलब्धि । ये दोनो विधि और निषेध के साधक हैं। अाचार्य हेमचन्द्र ने अनुपलब्धि को विधि-साधक हेतु के रूप में स्थान नही दिया है। परीक्षामुख में विधि-साधक छह उपलब्धियो एवं तीन अनुपलब्धियों का तथा निषेध-साधक छह उपलब्धियो एवं सात अनुपलब्धियों का निरूपण है। इसका विकास प्रमाणनयतत्वालोक मे हुआ है। वहाँ विधि-साधक छह उपलब्धियो एवं पांच अनुपलब्धियों का तथा निषेध-साधक सात सात उपलब्धियो एवं अनुपलब्धियों का उल्लेख है । प्रस्तुत वर्गीकरण प्रमाणनयतत्वालोक के अनुसार है। विधि-साधक उपलब्धि-हेतु साध्य से अविरुद्ध रूप में उपलब्ध होने के कारण जो हेतु साध्य की सत्ता को सिद्ध करता है, वह अविरुद्धोपलब्धि कहलाता है। अविरुद्ध-उपलब्धि के छह प्रकार हैं :(१) अविरुद्धच्याप्य-उपलब्धि : साध्य-शब्द परिणामी है । हेतु-क्योंकि वह प्रयत्न-जन्य है। यहाँ प्रयन-जन्यत्व व्याप्य है। वह परिणामित्व से अविरुद्ध है । इसलिए प्रयत्न-जन्यत्व से शब्द का परिणामित्त्व सिद्ध होता है। (२) अविरुद्ध कार्य उपलब्धि : साध्य--इस पर्वत पर अमि है । हेतु-क्योकि धुश्रा है। धुना अग्नि का कार्य है । वह अग्नि से अविरुद्ध है। इसलिए धूम-कार्य से पर्वत पर ही अमि की सिद्धि होती है।
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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