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________________ जैन दर्शन में प्रमाण मोमोसा [१३ (२) निषेध-साधक विधि-हेतु। (३) विधि-साधक निषेध हेतु । (४) निषेध-साधक निषेध हेतु । द्वितीय प्रकार : चार प्रकार के हेतु :(क) यापक-समय यापक हेतु। विशेषण बहुल, जिसे प्रतिवादी शीघ्र न समझ सके। (ख) स्थापक-प्रसिद्ध-व्यासिक साध्य को शीघ्र स्थापित करने वाला हेतु । (ग) व्यंसक प्रतिवादी को छल में डालने वाला हेतु । (घ) जूषक-व्यंसक से प्राप्त आपत्ति को दूर करने वाला हेतु। आहरण चार प्रकार के बाहरण३५(क) अपाय :-हेयधर्म का ज्ञापक दृष्टान्त । (ख) उपाय :-ग्राह्य वस्तु के उपाय बताने वाला दृष्टान्त । (ग) स्थापना कर्म-स्वाभिमत की स्थापना के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला दृष्टान्त । (घ) द्रव्युत्पन्न-विनाश :-उत्पन्न दूषण का परिहार करने के लिए प्रयुक किया जाने वाला दृष्टान्त । आहरण के दोष चार प्रकार के बाहरण-दोष 3:(क) अधर्मयुक्त :-अधर्मबुद्धि उत्पन्न करने वाला दृष्टान्त । (ख) प्रतिलोम :-अपसिद्धान्त का प्रतिवादक दृष्टान्त । अथवा-"शठे शाठ्यसमाचरेत् - ऐसी प्रतिकूलता की शिक्षा देने वाला दृष्टान्त। (ग) आत्मोपनीत:-परमत मे दोष दिखाने के लिए दृष्टान्त रखना, जिससे स्वमत दूषित बन जाए। (घ) दुरुपनीत :दोषपूर्ण निगमन वाला दृष्टान्त ।
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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