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________________ १२] जैन दर्शन मैं प्रमाण मीमांसा अनुमान का परिवार : स्वार्थानुमान पक्ष-साधन ३- प्रमिति -प्रमाण फल : अनन्तर अज्ञान - निवृत्ति अनुमान परार्थानुमान I प्रतिज्ञा-हेतु उदाहरण 33 चार प्रकार के हेतु ३ :(१) विधि-साधक प्रमिति हेय-बुद्धि, ४ -- प्रमाता - ज्ञाता - आत्मा । ५ -- विचार - पद्धति - अनेकान्त-दृष्टि परम्पर प्रमेय का यथार्थ स्वरुप समझने के लिए सत्-असत्, नित्य-अनित्य, सामान्य- विशेष, निर्वचनीय अनिर्वचनीय आदि विरोधी धर्म-युगलों का एक ही वस्तु में अपेक्षाभेद से स्वीकार । ६ – वाक्य-प्रयोग —— स्यादवाद और सदवाद : J 1 (क) स्यादवाद - अखण्ड वस्तु का अपेक्षा -दृष्टि से एक धर्म को मुख्य और शेष सब धर्मों को उसके अन्तर्हित कर प्रतिपादन करने वाला वाक्य 'प्रमाण वाक्य' है। इसके तीन रूप हैं : - ( १ ) स्यात् अस्ति ( २ ) स्यात्नास्ति । ( ३ ) स्यात्-अवक्तव्य । I (ख) सदवाद -- त्रस्तु के एक धर्म का प्रतिपादन करने वाला वाक्य 'नय-वाक्य' है। इसके सात मेद हैं- (१) नैगम ( २ ) संग्रह ( ३ ) व्यवहार (४) ऋजुसूत्र ( ५ ) शब्द ( ६ ) समभिरूढ़ (७) एवम्भूत | हेतु माध्यस्थ-बुद्धि विधि - हेतु ।
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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