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________________ जैनवालगुटका प्रथम नाग। चाहिये कि कच्ची दही या कच्ची छाछ की साथ खाने में दोष है पक्की की साथ खाने में कोई दोष नहीं। अगर दही या छाछ को अलग पकाई जावे और वेसन को अलग पकाकर फिर उन को मिलाकर उनकी कढ़ी बनाकर खावो तो उस में कोई दोष नहीं कच्ची दही छाछ में कच्चा वेसन मिला कर कड़ी बनाकर मत खाना दही या छाछ पकाकर उस की साथ दाल सीवी पापड़ पकौड़ी पड़ा वगैर एक पहर तक यानि तीन घण्टे तक खा सकते हो उसके बाद नहीं । अगर एक बार मोजन कच्चा दही और दाल वगैरा खाना चाहतेहो तो पहले दाल या दाटको बनो हुई वस्तु खालो फिर कुरला करके मंह साफ हो जाने पर पीछे दही या छाछ खाको या पहले दही या छाछ खाकर कुरलाकरकेफिर दाल यादालकीवनी हुई वस्तखाओ। (११) रात्रि भोजन-इस का खुलाला पहले भावकको ५३ क्रियाओंमें लिखा है वहां से देखो। (१२) बहुवीजा जिस फल के बीजों के अलग अलग हर वीज के घर नहीं होय जो फल को चीरते ही गरणदेकर बाहिर आपड़े जैसे अफीम का डोडा, धतूरे का फल आदि यह वठुचीजे फल अकसर जहरीले होते हैं इस लिये यह अभक्ष्य हैं। (१३ बैंगन(१४)चारपहरसे जियादा देर का सधाना कहिये भाचार नहीं माना। • (१५) जिस फल को आप न जानता हो कि यह फल खाने योग्य है या नहीं। (१६) जमीकंद-जमीकंद उस को कहते हैं जो जमीन के अंदर पैदा हो, जैसे हल्दी, मूंगफली, अदरख, मालू, कचालू (डिडू), अरवी (गागली) (गुल्या) मूली कसेरू मिल (कवलककड़ी) सराल, गाजर, शकरकदो, रताल, सवन कालो मसली, सवज सुफौद मूसली गुलेयाल की जड़ का आचार, जमीकंद, सवन सालम मिश्री हाथोपिच, गठा (पियाज, लसन, शलगम वीट जिस की विलायन से मोरस (दानेदार) खांड आती है इत्यादि जितने इस किसम के जमीन के अंदर पैदा होते हैं यह सर्व जमीकंद हैं यह हरे (सवज्ञ) नहीं खाने । समझावट। · यहां इतनी बात और समझनी कि सूके हुये खाने में कोई दोष नहीं और इन के सबज पवे या फल मसलन मूली के पत्ते या फल मगरे अरवी के पवे वगैरा जो जमीन के ऊपर लगते हैं उन के खाने में कोई दोष नहीं है कंदमूल की यावत शास्त्र में यह लेख है कि इन सबज में मत जीव राशि होती है इस लिये इन के खाने में महा पाप लिखा है परन्तु वह जीवराशि सिरफ हरे में ही होती है सूके में नहीं रहती
SR No.010200
Book TitleJain Bal Gutka Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherGyanchand Jaini
Publication Year1911
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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