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________________ जनबालगुटका प्रथम मांगा इस लिये हलदी सूठ मूंगफली शालम मिसरी वगैरा सूके जमीकंद के खाने को दोष नहीं है चाहे तो सूका हुआ खामो चाहे सूके हुए को तर करके या पका कर के मांबो कोई दोष नहीं है । मौर बाज अनजान जैनी जो ऐसा करते हैं कि यदि उन के कंदमूल का त्यांग है अगर उन के भोजन की थाली में या पतल पर कोई आलू वगैरा की भांजी (तरकारी' सांग रख देखें तो यह जो भोजन उस पतल पर या थाली में रखा है सारे को ही अपवित्र मान कर उठा देते हैं। फिर हट कर दूसरी थाली या पतल पर और भोजन रसवा कर खाते हैं सो यह उन की संखतं गलती हैं भालू वगैराका पक्का हुमा लागे रखने से तारा भोजन अपवित्र नहीं होजाता मुनि भी कन्दमूल भोजन में आया हुर्मा भलंग कर वाकी भोजन खाते हैं। पके हुए जमीकंद में कोई दोष नहीं होता सिरफ' रिचाज विगड़ जाने वा जिला इंद्रिय कर कृत कारित दोष उत्पन्न होने के वास्ते उन को खाने के लिये इजाजत नहीं है इस कारण से अगर अपने भोजन की थाली में कोई नावाकिफ आल धगैरा पका हुआ कंद रस्न मो देवे तो लाया ही भोजन मतं उठा दीं' सिरफ उस कंद को मत खावो वाकी भोजन सर खा सकते हो ॥ . (१७) मिट्टोमें पृथ्वी कार्य के अनेक जीव है और मिट्टी खानेले आत खराब होतों हैं यह भीतों में हिंसजाती है इसके खाने वाला जल्दी मर जाता है इस वास्ते कच्ची मिही नहीं खानी जिन बच्चों को कच्ची महो खाने की आदत पड़ जाती है वह दों चार वर्ष में जकर मर जाते हैं जिन के बच्चे मट्टी बाना सीख जावे यदि उनके वारिस उनकी जिंदगी चाहे तो जिस तरह हो उन का मिट्टी खाना छुड़ावे; एक बच्चा मिट्टी - सांता थी उस की माता ने मिट्टी में वारीक बहुत सी मिरच डाल छोटी छोटी डेली' बना सुनाली वसुत सी इली रसोत डाल कर इसी तरह कड़वी बनाई जहाँ बच्चा खेलता चुपके से उसके सामने एक डली डाल देवी बच्चे का मुंह खाते ही जेलता या कड़वी लगती पस बच्चे ने मिट्टी का खाना छोड़ दिया .... ___(८) नहर सस्त्रिया मीठा तेलिया रसंकपूर दालचिकना विषफल धतूरी अफीम कुचला असटिकनिया गैरा वस्तु जिंन के खाने से आदमी मरजावे बेह'सर्व जहर में शामिल हैं इन को बतौर जहर के मरने को खाना उस का नाम जहर अभक्ष्य है जो जहर दवाई में जिदंगी येचाने को दिये जाते हैं, जैसे दस्त बंद करने की अफीम बांसी गठिया दूर करने को धतूरा के बीजों की गोली जुलाव में जमाल गोटे का जुलाब सून साफ करने को संस्त्रिया दिल को ताकत देनेको 'स्ट्रिकनिया दरद रफै करने को कुचले बाली गोली आदि दवा दी जाती है यह जहरमें शामिल नहीं भस्य .
SR No.010200
Book TitleJain Bal Gutka Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherGyanchand Jaini
Publication Year1911
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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