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________________ जैनवालगटका प्रथम भाग। प्राकृत पाठ का अर्थ। पंचुंबरी-पांच उदुंवर वर, पीपर, ऊमर, कठूमर, पाकर । चउविगई-मद्य,मांस, मधु, मक्खन,१० हिम-वरफ११ विस-जहर .१२ करए-करका [ओला] १३ असन मट्टीये-मांटी, १४ रयणी भोमण-रात्रि भोजन १५गंचिअ-कंद मूल, १६ बहुबीअ-बहुवीजा १७ अणंत संधाण-आचार वगैरह १८ घोलवड़ा-विदल १९ पायंगण-बैंगण, २० अमुणि अनामाणि फुल्ल फलयानि-अजान फल २१ तुच्छ फलं-तुच्छ फल, २२ चलिअरसं-चलितरस। ९) उमर गुल्लर को कहते हैं। पीपल फल,३ वड फल, 8 कठमर जो काठ फोड कर निकले,जैसे सिंवलफल कटहलवढल जिसके फलसे पहले फूल नहीं आवे। (५) पाकर फल यह यनान ईरान आदि में बहुत होता है इस का जिकर यूनानी हिकमत की किताबो में लिखा है यह पांचों पांच उदंबर कहलाते है। (६) मद्य (मदिरा) शयव ७ मांस (आमिष) ८मधु ( शहत) इन तीनों का पहला अक्षर "म"है इस पास्ते इन को तीन मकार कहते है। ९वोरा (ओला) (गडा) जो किसी समय भासमान से वर्षा करते हैं। {१०) विदल-उड़द, चना, मूंग, मोठ, मसूर, लोविया (महा) (सूंठा) अरहर, मटर, कुलथी, वगैग ऐसे हैं जिन को तोडने से उन के अलग अलग दो टुकड़े होजावे उन की दाल, भल्ले, पकौड़ी, पापड़, सीवी, पूड़ा, रोटी, उड़दी, बूंदी, वगैरा कच्चो पदो पा छाछ की साथ मिलाकर नही खाने या तोरी, टीडे, करेला, धीया, खीरा, ककडी, सेम, घगैरा जितनी सबजी या खरबूजा, तरबूज, सरदा, आम, बादाम, धनियां, चारोमगज, वगैरा ऐसे है जिन के फल के या गुठली के या वीज के या गिरी के तोड़ने से दो टुकड़े बरावर बरावर के होजावे इन को कच्ची दही या छाछ में मिला कर या साथ नहीं खाने यह सब विदल हैं । इस में यह दोष है कि कच्ची दही या छाछ में ऐसी वस्तु मिलाने से जव उस को मुख में दो तो मुख की राल लगते ही उस में अनंत जीवराशि पैदा हो जाती है पस लिये इस के खाने में महा पाप लिखा है । यहां इतनी बात समझ लेनी
SR No.010200
Book TitleJain Bal Gutka Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Jaini
PublisherGyanchand Jaini
Publication Year1911
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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