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________________ ७२ हिन्दी के नाटककार रहे हैं। सभी को एक-केवल एक-पागलपन है, किसी प्रकार राष्ट्र का उद्धार हो। साम्राज्य स्कन्दगुप्त की निजी सम्पत्ति नहीं है। एक नहीं, सौ स्कन्दगुप्त उस पर निछावर हैं। और स्कन्दगुप्त भी अपने अधिकार के लिए नहीं, राष्ट्र के लिए लड़ रहा है। वह कहता है-'मेरा स्वत्व न हो, मुझे अधिकार की आवश्यकता नहीं। यह नीति और सदाचारों का महान् पाश्रयवृक्ष-गुप्त साम्राज्य-हरा-भरा रहे और कोई भी इसका उपयुक्त रक्षक हो।" ___ यदि ऐसा महान् साम्राज्य सुख-शान्ति और समृद्धि का भण्डार नष्ट होने लगे तो हृदय क्यों न टुकड़े-टुकड़े हो जाय । ऐसे विशाल साम्राज्य के तनिक भी अनिष्ट की आशंका से हृदय कॉप उठेगा। मातृगप्त के शब्दों में हर एक भारत-निवासी की व्यथा बज उठगी- "अ'स्लय-सिन्धु में शेष-पयंकशायी सुषुप्तिनाथ जागेंगे, सिन्धु में हलचल होगी, रत्नाकर से रत्न-राजियाँ आर्यावर्त की वेला-भूमि पर निछावर होंगी। उद्बोधन के गीत गाये, हृदय के उद्धार सुनाये परन्तु पासा पलटकर भी न पलटा ।" मातृगुप्त के इन शब्दों में वर्तमान भारत की सैकड़ों क्रान्तियों की बेयमी छटपटा रही है। पर जिस देश में देवसेना-जैसी तपस्विनी बालाए हों, जो देश की सेवा के लिए भीख तक माँग सकती हैं, अपनी कामनाओं को कुचलकर आर्यावर्त के उद्धार के लिए अपने को भस्म कर सकती हैं, वह देश सदा स्वाधीन रहेगा । जिस देश में बन्धुवर्मा, भीमवर्मा, मातृगुप्त-जैसे युवक हों, वही कभी पद्दलित नहीं हो सकता। . प्रसाद के सभी नाटक पराधीनता की अन्धकारमयी निशा में प्रकाशपिण्ड के समान ज्योतिमान हैं। इन नाटकों के सभी पात्रों के प्राणों में बलिदान का उल्लास, राष्ट्र-निर्माण का संकल्प और इनके प्रयन्नों में सफलता का गौरव है। प्रसाद का कवि प्रसादजी मौलिक रूप में कवि थे। उनकी मधुवेष्टित भावना, इन्द्रधनुषी कल्पना और रोमांच-गद्गद् अनुभूति मिलकर उनके हृदय के सजग और स्वस्थ कवि का निर्माण करती है। प्रसादजी का कवि उनके नाटकों में अत्यन्त सजग और सचेष्ट ही नहीं, अपने अधिकार का अनुचित उपभोग करता हुआ भी पाया जाता है। प्रसादजी के सभी नाटकों में, जहाँ भी देखिये, उनकी कवि-कल्पना के रंगीन पंखों की छाया में उनका नाटककार दव-सा
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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