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________________ जयशंकर 'प्रसाद' ७१ 'चन्द्रगुप्त' 'ध्रुवस्वामिनी' और 'स्कन्दगुप्त' में भारतीय राष्ट्र पर विदेशी आक्रमण हुए हैं - ऐसे ही समय राष्ट्रीयता चमकती है। । 'चन्द्रगुप्त' की घटनाओं को भी प्रसाद ने अपनी दिव्य प्रतिभा की सान पर चढ़ाकर नई आभा प्रदान की है। नन्द द्वारा चाणक्य का अपमान व्यक्तिगत नहीं, एक राष्ट्रीय घटना है । चाणक्य चाहता है, सिकन्दर के विरुद्ध नन्द पर्वतेश्वर की सहायता करे। वह कहता है - ' 'यवन आक्रमणकारी बौद्ध और ब्राह्मण का भेद न रखेंगे ।" एक अन्य स्थान पर वह सिंहरण से कहता है - " मालव और मागध को भूलकर जब तुम आर्यावर्त का नाम लोगे तभी वह (आत्म-सम्मान ) मिलेगा ।" और यही एकता की भावना चाणक्य ने जगा दी सिंहरण के लिए समस्त आर्यावर्त अपना देश हो गया । तक्षशिला के पतन पर उसका हृदय विदीर्ण होने लगा । वह कहता "मेरा देश मालव ही नहीं, गांधार भी है— समस्त आर्यावर्त है ।" चाणक्य की निर्मल- प्रेरणा ने सभी श्रार्यावर्त को एक झण्डे के तले एकत्र कर दिया । समस्त आर्यावर्त सबका हुआ क्षुद्रक, मालव, पंचनद, धे सभी गणराज्य आपसी भेद-भाव भूलकर श्रार्यावर्त के स्वस्थ श्रंग बने । श्रार्य युवक-युवतियों के प्राण पुकार उठे । अलका के गीत में राष्ट्र बोल उठा हिमाद्रि तुङ्ग श्रृङ्ग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती । स्वयं प्रभा समुज्ज्वला, पुकारती | स्वतंत्रता अमर्त्य वीर पुत्र हो प्रशस्त पुण्य-पंथ है, 'स्कन्दगुप्त' में प्रसाद की राष्ट्रीय भावना और भी उज्ज्वल, ती प्राणवान और त्यागमयी होकर आई है। स्कन्दगुप्त के समय टिड्डीदल के समान हूणों की बाढ़ भारतीय राष्ट्र की सुख-समृद्धि और शान्ति को बहा ले जाने के लिए आ रही थी। इसमें अधिक-से-अधिक कष्ट - सहिष्णुता, देश - सेवा और निस्वा' बलिदान के चमक चित्र हैं । त्याग, दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो, बढ़े चलो बढ़े चलो । बन्धुवर्मा का महान त्याग - मालव-राज्य को स्कन्दगुप्त के चरणों में समर्पण कर देना, हँसते-हँसते अपना बलिदान करना, राष्ट्र-यज्ञ में गौरव - ' पूर्णाहुति है । स्कन्दगुप्त, देवसेना, पर्णदत्त, मातृगुप्त, बन्धुवर्मा सभी देश भक्ति की दीप शिखा से आलिंगन करने के लिए श्राकुल हो आगे बढ़
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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