SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३० हिन्दी के नाटककार भरत में विनय, वेदना, आत्म-ग्लानि बन्धु-प्रेम और सम्मान, त्याग, तप और दैन्य कूट-कूटकर भरा है। भरत की आत्म-वेदना थोड़े से में ही व्यक्त है, "भगवान् करे, वे मान जायं । इसी से मेरी माता का मेरे कुल का कलंक धुल सकता है । मेरी माता को यह सूझा क्या ? ..... वह जन्मदात्री है, अधिक कह ही क्या सकता है।" उर्मिला के अतिरिक्त 'उर्मिला' के प्रायः सभी चरित्र रामायण में चित्रित चरित्रों की ही प्रतिछाया हैं, बल्कि उनसे कमजोर और फीके। 'दुविधा' और 'अपराधी' यथार्थ जीवन के चरित्र होते हुए भी श्रादर्श. वादी, कल्पना-प्रधान रोमाण्टिक और स्वप्नों में उड़ने वाले ही हैं। जीवन की यथार्थता उनमें नहीं आ पाई । न वह तीखापन, न वह उलझन और न वह बुद्धिवादिता हो जो वर्तमान जीवन के चरित्रों में पानी चाहिए । केशव के चरित्र में अवश्य कपटपूर्ण यथार्थता है, वह भी हल्के ढङ्ग की । वह भी बाहरी रूप में रोमाण्टिक है। यह उसका अभिनय हैं। इस पर शर्मा जी परिश्रम न कर सके । इस में यदि गहरा रंग भरा जाता तो यह बहुत सशक्त पात्र बन जाता, पर मालूम होता है, जीवन के विषय में शर्मा जी का अध्ययन हल्का है। विनयमोइन स्वप्नों में उड़ने वाला रोमांटिक पात्र है। प्रकृति में उसे रंगीनियाँ दीखती हैं। वह कवि के समान उसके सौंदर्य पर पागल है, अाकाश इतना नीला था, इतना निर्मल था कि उसे देखकर हृदय प्रफुल्लित हो उठा। हरे-हरे पौधों में नन्हे-नन्हे फूल फूल रहे थे, वृक्षों पर पक्षी कलरव कर रहे थे और पवन में वह संगीत था कि मैं झूम उठा। केशव के चंगुल से सुधा जब विनय के ही प्रयत्न से छूट जाती है, विवाह नहीं हो पाता, तो वह फिर प्रेम की भाशा लेकर विनय के पास पाती है, विचार-प्रधान कोई भी पात्र उसे स्वीकार कर लेता; पर विनय की भावुकता और रोमाण्टिक प्रकृति उससे कहलाती है, "सुधा, उस दिन जब तुम मेरे पास केशव की पत्नी की कहानी लेकर आई थीं, तो तुमने मेरे सोये हुए प्रेम को जगा दिया था। तभी से मेरे हृदय में प्रेम और आत्माभिमान का द्वन्द्व छिड़ गया। परसों मैने सोचा था, प्रेम प्रात्माभिमान को दबा लेगा, पर यह मेरी भूल थी। मेरे लाख प्रयत्न करने पर भी प्रेम आत्माभिमान पर विजय न पा सका।" ____ अपराधी' का अशोक श्रादर्शवादी है। रोमाण्टिक प्रभाव भी उस पर कम नहीं। चोर को जाने देता है और उसका हुलिया बताने तक से इन्कार कर देता है, यह कोरा प्रादर्शवाद है। साथ ही लीला के साथ उसका
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy