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________________ पृथ्वीनाथ शर्मा २३१ भावुकता भरा प्रेम भी है। कहानी सुनाने में उसकी रोमाण्टिक प्रकृति का पता चलता है। नारी-चरित्रों में सुधा भावुकता के पंखों पर उड़कर रोमांस के आकाश में स्वप्न-मिल मिल कल्पना के सितारों से खेलने वाली लड़की है। पहले उसका प्रेम विनय से हुअा। इसके बाद इंगलैण्ड में जाकर वह केशव से प्रेम करने लगी। उसे मालूम हुआ कि केशव विवाहित है तो उससे विमुख हो गई और फिर विनय की ओर मुड़ी। पर आदि से अंत तक उसके चरित्र में दुविधा है, "मैं केशव से प्रेम करती । वह मुझ पर बलाएं लेता है । और चाहिए भी क्या? परन्तु विनयमोहन कहता है, मैं चापलूसी को प्रेम समझती हूँ। मेरे हृदय का स्पन्दन अस्वाभाविक है। परन्तु नहीं, केशव मुझे सचमुच प्यार करता है । मेरे हृदय की धड़कन में तड़प है, जीवन है । विनयमोहन झूठा है-बिलकुल झूठा है।" सुधा के इस कथन में उसका चरित्र अंकित हो गया है। ____ 'अपराधी' की रेणु. और लीला वर्तमान जीवन में आम तौर पर पाई जाने वाली लड़कियाँ हैं। रेणु का चरित्र अधिक त्यागमय है और विचारप्रधान भी है। वह पिछले रोमांस को याद करके रोने वाली नहीं, बल्कि कर्तव्य करने वाली है। 'अपराधी' का सबसे उज्ज्वल चरित्र है, अाभा। अशोक की कहानी सुनकर वह अपने पति (चोर) को ही गिरफ्तार करा देती है। उस साधारण मारी की महत्ता रेणु और लीला से भी अधिक गौरवमय है। नारी-चरित्रों में 'उमिला' पौराणिक चरित्र होते हुए भी सबसे सबल और प्राणवान है । वह गतिशील जीवन की यर्थाथता लिये है। वह पति के मार्ग में बाधक नहीं बनती, उसे वन जाने देती है और इतना अात्माभिमान भी उम्पमें है कि वह लक्ष्मण से भेंट करने भी नहीं जाती, जब वह वन जाने की तैयारी कर रहा है। वह कहती है, "एक बार उनके दर्शन कर गाऊँ। नहीं, मैं नहीं, जाऊँगी। ..... . . . . . . 'रो-रोकर अपने प्राण दे दूंगी, किन्तु जाऊँगी नहीं।" ' और यह मान और स्वाभिमान का रूप, लक्ष्मण के वन से लौटने पर और भी निखर 'पाता है. 'मन तो अवश्य करता है कि उड़कर उनके चरण छ लू, पर यही तो परीक्षा है । . . . . 'नहीं, मैं कदापि नहीं जाऊँगी। आज पहले मुझ तक पहुँचना उनका कर्ता है । मैं तब तक यहाँ से नहीं हिलूंगी जब तक वे अपना कर्तव्य-पालन नहीं करते।" और यही मानिनी उर्मिला लघमण के विरह में कैसी तड़पती रही है, “नारी हूँ, नारीत्व के बन्धनों से बँधी
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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