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________________ पृथ्वीनाथ शर्मा २२६ परिस्थितियाँ इस दुविधा को व्यापक और अधिक प्रभावशाली नहीं बना सकी । 'अपराधी' में तो समाज की कोई समस्या ही नहीं । वह तो केवल एक दुर्घटना की उपज है-बोर द्वारा अशोक की जेब में घड़ी रख देना और उसका भाग जाना । अपने नाटकों द्वारा शर्मा जी कोई भी सामाजिक समस्या हमारे सामने न रख सके । रोमांस का इनके नाटकों के सभी पात्रों पर अत्यन्त प्रभाव है। भावुकता आवश्यकता से अधिक है । सामाजिक नाटकों में यदि आज का बुद्धिवाद भावुकता को मिठास लेकर जीवन की उलझनों को सुलझाता दीखता, तो शायद शर्मा जी के नाटक अधिक स्थायित्व प्राप्त करते । सभ्यता, शिक्षा, विज्ञान, मानव-सम्बन्ध, पारस्परिक परिचय और संघर्षों से अनेक उलझनें हमारे जीवन में आ गई हैं, उनका आभास भी इनके नाटकों में नहीं । 'दुविधा में प्रारम्भ तो शर्मा जी ने अच्छा किया था, पर अन्त अच्छा न हुआ । अन्त भी भावुकता में ही हुआ, इससे सुधा के जीवन की तो समस्या हल न हुई । अगले नाटकों में तो वह पग भी उनका पीछे की तरफ ही मुड़ गया, जो उन्होंने 'दुविधा' में उठाया था । 'व्यक्ति-वैचित्र्य' आधुनिक कला का विशेष आकर्षण है और सामाजिक जीवन के पात्रों में यह विशेषता भरी जा सकती है, पर शर्मा जी चरित्र की विचित्रता न भर सके। उनके पात्र 'साधारण' से ऊपर न उठ सके । पात्र-चरित्र-चित्रण शर्मा जी के नाटकों के पात्र वर्तमान जीवन से लिये गए हैं। 'उर्मिला' पौराणिक नाटक है, उसके पात्रों-नायिक-नायिका आदि-का विचार प्राचीन शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार ही किया जाना ठोक है । उर्मिला का नायक लक्ष्मण धीरोदात्त नायक है। वह वीर है, निर्भय है, शीलवान है, अात्मश्लाघाहीन है, विनयी है । भरत को सेना सहित वन में आता देखकर लक्ष्मण उससे युद्ध करके उसका विनाश करने को प्रस्तुत हो जाता है, "अाज चिर काल से रोके हुए क्रोध को और कैकेई द्वारा किये गए तिरस्कार को शत्रु-सेना पर वैसे ही छोडूगा, जैसे फूस के ढेर पर अग्नि छोड़ी जाती है। आज मैं चित्रकूट के वन को अपने तीक्ष्ण वाणों से शत्रुओं के शरीर काटकर उनसे निकले हुए रुधिर से सोंचूगा । आज मैं इस महा संग्राम में सेना सहित भरत का नाश करके अपने धनुष और वाणों के ऋण से उऋण हो जाऊँगा।" राम धैर्य, शान्ति, क्षमा, शील, विनय, समबुद्धि आदि की मूर्ति हैं।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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