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________________ आलोक दुःखान्त नाटक लिखे ही नहीं गए। यूरोप में शुद्ध रूप में दोनों प्रकार के नाटकों की रचना हुई । हिन्दी-नाटक अपने जन्म-काल से ही पाश्चात्य समृद्ध नाटक-साहित्य से घनिष्ठ परिचय में श्रा गया, इसलिए हमारे यहाँ दोनों प्रकार के नाटक तो लिखे ही गए, मौलिक प्रयोग भी हुए । 'प्रसाद' ने अपने नाटकों की रचना विशेष ढंग से की। उनके अधिकतर नाटक न शुद्ध रूप से दुःखान्त की श्रेणी में रखे जा सकते हैं, न सुखान्त की । नाटकों के अन्त को दृष्टि में रखते हुए उनके नाटकों को नये वर्ग में रखा जायगा, जिसे प्रसादान्त या प्रशान्त कहना चाहिए । अब हम नाटकों का वर्गीकरण करते हुए उनके तीन वर्ग मानते हैंदुःखान्त, सुखान्त और प्रसादान्त । दुःखान्त का अर्थ है, जिसका 'अन्त दुःखमें हो। दुःखान्त नाटकों की परम्परा युनानी नाटकों से चली। डायोनिसस नामक देवता के जीवन की करुण, दुःखजनक जीवन-घटनाओं को लेकर वहाँ गीत-नृत्य हुआ करते थे। इनको ट्रेजेडी कहा जाता था। यह ( Tragedy ) शब्द यूनानी 'ट्रगांस' शब्द से बना है, जिसका अर्थ बकरा होता है। डायोनिसस का धड़ बकरे के समान माना जाता है। इसके अनुकरण में गाये गए ये बकरा-गीत वेदना और करुणा से भरे होने के कारण दुःखान्त नाटक कहलाने लगे । दुःखान्त का अर्थ परिहास-वर्जित गम्भीर नाटक भी लिया जाता था । अन्त चाहे सफलता में हो, पर नाटक की गम्भीरता बनाये रखने के लिए उसमें करुणा, भाव, अातंक, पीड़ा, अत्याचार श्रादि के दृश्य भी रखे जाया करते थे । अरस्तू ने जो ट्रेजेडी की परिभाषा दी थी, उसमें गाम्भीर्य तथा हास्यवर्जन का ही भाव था। बाद में उसमें मृत्यु का समावेश भी हो गया। ___ दुःखान्त का यह शर्थ न समझना चाहिए कि किसी की मृत्यु, जीवन पीड़ा या वेदनापूर्ण दिखाने से नाटक दुःखान्त बन जाता है। यदि किसी चोर, डाकू, श्रात तायी तथा हत्यारे का कष्टपूर्ण जीवन और उसकी मृत्यु भी नाटक में हो, तो भी वह दुःखान्त नहीं हो सकता । अन्तिम प्रभाव के अनुसार ही इसकी परिभाषा करना उचित है । किसी सच्चरित्र, परोपकारी, देशभक्त व्यक्ति की मृत्यु वेदनापूर्ण जीवन-घटनाए, जीवन-भर प्रतिकूल परिस्थितियों से युद्ध करते रहने पर भी अन्त में भारी अमफलता यदि नाटक में वर्णित हो तो वह दुःखान्त कहला सकता है। उसका अन्तिम और स्थायी प्रभाव करुणा ही होगा । दर्शक छलकती पलकें और करुणाहत मन लिये प्रेक्षा-गृह से बाहर आयगा । दुःखान्त नाटक में सद् पात्र, नायक-नायिका-सभी बड़े-से-बड़ा कष्ट
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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