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________________ हिन्दी नाटककार किया यूरोप में साथ ही साथ चल रही है । मैटरलिंक का प्राध्यात्मिक प्रभाव भी कम नहीं इसके नाटक अन्योक्ति-प्रधान होते है। इनमें प्राध्यात्मिक समस्याओं का चित्रण और सुलझाव रहता है। बीसवीं शताब्दी भारत में भी नाटकों का नवीन युग लेकर आई । बंगला में द्विजेन्द्रलाल राय ने अत्यन्त कलापूर्ण नाटक लिखे । इनके पात्रों में प्रात्मसंघर्ष की विशेषता है । हिन्दी में प्रसाद जी ने नाटक में प्राण-प्रतिष्ठा की। इब्पन और शा के यथार्थवाद को आदर्श मानकर लक्ष्मीनारायण मिश्र ने अनेक मौलिक नाटकों की रचना की। ___मराठी साहित्य में देवल और कोल्हटकर ने क्रमशः 'शारदा' और 'मूकनायक' लिखकर मराठी साहित्य का गौरव बढ़ाया। श्री खाडिलकर और श्री भडकरी के 'कीचक वध' और 'एकच प्याला' की मराठी साहित्य में बड़ी धूम है। श्री भा० वि० करेरकर का 'सत्तेचे गुलाम' और श्री प्रा० के० अत्रे का 'लैग्नाची बेड़ी' भी विख्यात नाटक है । तामिल साहित्य में भी नाटक विकास की अोर हैं। श्री वी० को सूर्यनारायण शास्त्री का 'मानविजयम्' और ५० सम्बन्ध मुदालियर का 'लीलावती सुलोचना' प्रसिद्ध रचनाए है। तेलगू साहित्य में श्री एमनचरला गोपालराव का 'हिरण्याकश्यप' और 'विश्वन्तर' नाटक-कला की दृष्टि से अत्यन्त सफल कृतियाँ हैं। ___ बंगाली, मराठी में तो अपना रंगमंच भी है। तामिल नाड में भी रंगमंच विकसित हो गया है। हिन्दी में अपना रंगमंच अभी नहीं है। पर इधर कुछ दिनों से हिन्दी-नाटकों का अभिनय विभिन्न कला-मण्डल करते रहते हैं। लक्षणों से लगता है, यहाँ भी अपना रंगमंच शीघ्र उन्नत होगा। नाटकों का वर्गीकरण भारतीय साहित्य-शास्त्र में नाटक का उद्देश्य प्रानन्द माना है, जैसा कि हमारे यहाँ नाटक की उत्पत्ति की काल्पनिक कथा से प्रकट है। इसलिए यहाँ ऐसे ही नाटकों की रचना हुई, जिनका अन्त सफलता और सुख में है। यूनान में ऐसे नाटकों का प्रारम्भ पहले हुआ, जिनमें भय,अातंक, करुणा,दुःख, असफलता आदि के दृश्य अधिक रहतेथे और जिनका अंत भी दुःख में होता था। डायोनिसस के अनुकरण पर जो गीत-नृत्य-नाटक होते थे, वे करुणाजनक या दुःखान्त (Tragedy)कहलाते थे। पश्चिमी साहित्य-समीक्षकों ने नाटकों के दो वर्ग किये-दुःखान्त और सुखान्त । भारत में क्योंकि नाटक का प्रयोजन बिलकुल भिन्न था अतः विकास भी भिन्न और मौलिक ढंग पर हुआ, यहाँ
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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