SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी नाटककार गम्भीरता से सहन करते हैं, रो-चिल्लाकर नहीं दर्शक की संवेदना पीड़ित पात्र से बराबर बढ़ती जाती है। शेक्सपियर के हेमलेट, जूलियस सीजर, रोमियो जूलिएट, मेकबेथ अमर दुःखान्त रचनाएं हैं। हिन्दी में 'दाहर', 'स्वप्नभंग', 'सिन्दूर की होली' इसी वर्ग में आयंगे । सुख-सफलता में अन्त होने वाले नाटक सुखान्त कहलाते हैं । ऐसा नहीं, कि सुखान्त नाटक में दुःख, पीड़ा, करुणा, अत्याचार की घटनाएं होती ही नहीं । इनमें करुणा और दुःख की घटनाएं आती हैं, पर अन्त इनका सुख या सफलता में होता है। दर्शक सुख, श्रानन्द, उत्साह से भरा हृदय लेकर उठता है । वह प्रसन्नता की स्फूर्ति लेकर घर जाता है । 'शकुन्तला' में भी बीच में शकुन्तला का करुण जीवन चित्रित है। दुष्यन्त भी वियोग-विह्वल होकर ों की झड़ी लगाता है, पर इसका अन्त शकुन्तला दुष्यन्त-मिलन में होता है । इसलिए यह सुखान्त नाटक है । सुखान्त नाटक में नायक-नायिका आदि सब विघ्न-बाधाओं और उत्पीड़न- दुःखों से पार निकलकर सफलता पाते हैं। ऐसे भी सुखान्त नाटक हो सकते हैं, जिनमें दुःख और करुणा की घटनाए ही न हों । शेक्सपियर के 'मर्चेण्ट, ऑॉव वेनिस' और हिन्दी के 'शपथ', 'चन्द्रगुप्त मौर्य', 'राज- मुकुट', 'उद्धार', 'वत्सराज', 'विद्यासुन्दर' तथा 'शिवासाधना' सुखान्त नाटक हैं । प्रसादान्त या प्रशान्त नटकों में सुख-दुःख का उचित अनुपात में विलक्षण मिश्रण रहता है । प्रसादान्त नाटक का प्रभाव मंगलकारी या शान्ति - रसपूर्ण होता है । इस प्रकार के नाटकों में नायक-नायिका भयंकर वेदनाएं सहते और महान् त्याग करते हैं । उनकी करुणा और वेदना देखकर सामाजिक सिसकसिसक उठते हैं । त्यागी, वीर, परोपकारी पात्रों या नायक-नायिका की मृत्यु भी हो सकती है, पर इन सब दुःखद घटनाओं से विश्व-मंगल का उदय होता है । सामाजिक का करुणा-विह्वल हृदय सन्तोष की साँस लेता है। दर्शक की भीगी पुतलियों में भी उज्ज्वल भविष्य का चित्र चमक उठता है । प्रशांत या प्रसादान्त नाटकों का प्रभाव सुखान्त और दुःखान्त दोनों से कहीं स्वस्थ और स्थायी होता है । प्रसादान्त नाटक के सुख-दुःख मानव-कल्याण में समा जाते हैं । इन नाटकों में मनोरंजन और करुणा से परे विश्व मंगलका दर्शन प्रतिष्ठित किया जाता है। इसप्रकार के नाटक करुणा और मुस्कान की लड़ियों को जोड़ने वाली कड़ी हैं। 'प्रसाद' के 'स्कन्दगुप्त', 'अजातशत्रु' तथा 'ध्रुवस्वामिनी', उदयशंकर भट्ट के 'मुक्ति-पथ' और 'विक्रमादित्य', 'प्रेमी' के 'विष पान' और
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy