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________________ २०६ हिन्दी के नाटककार करने में इसी प्रकार का संघर्ष तो करना पड़ा था ।" और जब यदुराय महल में श्राकर रेवासुन्दरी से भेंट करता है तो कहता है, "मे अपने हृदय को चीरकर आपके सम्मुख किस प्रकार रखूं ।" इन थोड़े-से शब्दों में उसके हृदय का प्रेम स्पष्ट हो जाता है। 'शशिगुप्त' की हैलेन भी मुग्धमना बाला है । शशिगुप्त को देखकर उस पर मुग्ध हो जाती है, वह अपने पिता से कहती है, “पिताजी शशिगुप्त क्या सचमुच शशि जैसा नहीं है। उससे अच्छा कभी कहीं भी कोई पुरुष आपने देखा ?" इसके साथ ही हैलेन में विचार-शीलता भी है, वह केवल प्रेम करना ही नहीं जानती, देश-भक्ति और देश-द्रोह का भी अंतर समझती है । जिस शशिगुप्त के प्रति अपने प्रेम को वह अपने पिता के सामने भी नहीं छिपाती उसी के देश-द्रोह की बात सुनकर वह कहती है: “आप ठीक कहते हैं पिताजी, देश-भक्त देश द्रोही से विवाह नहीं कर सकता । स्वर्ग और नरक का सम्बन्ध नहीं हो सकता । में देश भक्त, शशिगुप्त देश-द्रोही ।...... शशिगुप्त प्रेम का पात्र नहीं, घृणा की वस्तु है ।" हैलेन का प्रेम भी विचार-प्रधान है। वह यूनानी राष्ट्रीयता की समर्थक नहीं, वह विश्व - प्रेम को भी दीवानी है, "यूनान और भारत, यवन और भारतीय मित्र और शत्रु ये सब क्यों ? एक पृथ्वी, एक मानव-समाज, सभी मित्र- -यह क्यों नहीं ।" और जब उसे मालूम होता है कि शशिगुप्त देश-भक्त है— राष्ट्र-निर्माता है, तो उसका प्रेम फिर जागृत हो जाता है: " में यहीं रहूँगी पिताजी आततायी यवनों के विद्रोही और देश-प्रेमी शशिगुप्त से, केवल शशिगुप्त से विवाह . . . . . " 'महत्त्व किसे ' की सत्यभामा और 'दुःख क्यों' की 'सुखदा भी सबल नारीचरित्र हैं । सत्यभामा यथार्थवादी व्यवहार कुशल नारी है । उसमें स्फूर्ति है, गतिशीलता है, दृढ़ संकल्प है। उसका पति कर्मचन्द आदर्शवादी गांधीवादी है । उसे उसके साथी ही बदनाम और बरबाद करते हैं और सत्यभामा उन से 'जैसे को तैसा' का व्यवहार करती है । वह कहती है, "इन कीड़ों को कुचले बिना अब मुझे क्षण-भर भी विश्राम नहीं मिल सकता। जिन्होंने प्राप को बरबाद किया, उस बरबादी पर बदनाम बनाया और ऐसी नीच कार्यवाही करने पर भी जिन्हें शर्म नहीं आई, उन्हें कुचले बिना मुझे कैसे शान्ति मिल सकती है । मैं मृत्यु-लोक की मानवी हूँ, स्वर्ग की देवी नहीं ।" सत्यभामा अंत में कर्मचन्द को समझाती है कि इस संसार में महत्त्व धन का है। धन है तो "
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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