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________________ सेठ गोविन्ददास २०५ कुछ देर ठहरकर ) । हाँ, हाँ, अवश्य किसी-न-किसी कुलीन की । चलकर हट कुलीनों खोपड़ी ! ( एक चिता को देखकर ) किसका शव जल रहा है तुझमें कुलीन का या अकुलीन का ? ( दूसरी चिता को देखकर ) और तुझमें किसका ? यदि उसमें कुलीन है और तुझमें अकुलीन तो दोनों के जलने की विधि में कोई अन्तर है ?" 'दुःख क्यों' में यशपाल के दोहरे चरित्र का चित्रण भी बुरा नहीं । वह इसलिए वकालत करना नहीं छोड़ता कि कांग्रेस ने असहयोग की माँग की है - आज्ञा दी है, बल्कि अपने एक साथी वकील ब्रह्मदत्त को नीचा दिखाने के लिए | ब्रह्मदत्त ने यशपाल की सहायता भी की है, यशपाल इतना धूर्त, और द्वेष है कि वह उसी को नीचा दिखाना चाहता है, "सच तो यह है कि उस बदजात ब्रह्मदत्त को इस बढ़ती हुई स्थिति को देखकर ही मुझे अपना जीवन भार स्वरूप हो गया है जब तक उसकी सारी प्रतिष्ठा और कीर्ति मिट्टी में न मिल जायगी, तब तक मुझे शांति नहीं मिल सकती ।" यही यशपाल कांग्रेस Cast करता है । चुनाव लड़ता है और रुपये के लालच में एक विद्रोही को शरण न देकर गिरफ्तार करा देता है अपने मित्र चन्द्रभान की सहायता से । 'बड़ा पापी कौन' में त्रिलोकीनाथ और रमाकान्त दोनों के ही चरित्र का अच्छा चित्रण किया गया है | त्रिलोकीनाथ तो स्पष्ट और खुले रूप में वेश्या रखे हैं और रमाकान्त सदाचार की डींग मारते हुए भी अपनी साली से उसी प्रकार सम्बद्ध है, जैसे त्रिलोकीनाथ वेश्या से । सदाचारी रमाकान्त छल-कपट से भी त्रिलोकीनाथ के विरुद्ध काम करता है, केवल चैम्बर का प्रधान बनने के लिए। वह कहता है, "मेरी उसकी क्या दुश्मनी ? परन्तु बात यह है कि इस प्रकार के वेश्यागामी प्रोर शराबी मनुष्य का हमारे चैम्बर का सभापति रहना, हम सबके लिए घोर लज्जा का विषय है ।" वही रमाकान्त विजया को खींचकर गले से लगाते हुए कहता है : "ग्राह विजया ! क्या कहती हो ? कहाँ तुम और सत्य कहता हूँ कि तुम्हारे पूर्व किसी ने मुझ पर ऐसी मोहिनी न कहाँ वे ? मैं डाली थी ।" नारी-चित्रण में भी लेखक ने विभिन्न रूप उपस्थित करने का प्रयास किया है। रेवासुन्दरी हैलेन जैसी मुग्ध कुलवधुए भी उनके नारो चित्रणों में हैं; सीता, राधा, राज्य-श्री जैसी आदर्श सौंदर्य मयी सुकुमार नारियाँ भी और सत्यभामा, सुखदा भी । यदुराय की वीरता, और शस्त्र - कौशल देखकर मुग्धा बाला रेवासुन्दरी का आकर्षित होना स्वाभाविक है । वह उसे प्राप्त करने का निश्चय करते हुए कहती है: “रुक्मिणी देवी को भगवान् कृष्ण के, सुभद्रा देवी को वीरवर अर्जुन के और संयोगिता देवी को महाराज पृथ्वीराज के प्राप्त
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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