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________________ सेठ गोविन्ददास २०७ सब लोग सम्मान करते हैं, और धन जाने पर वे ही लोग बदनाम करते हैं और बड़े-से-बड़ा अपराध मढ़ते हैं। ___'दुःख क्यों?' की सुखदा के चरित्र में रोमाण्टिक प्रभाव है । वह ईमानदारो और नैतिकता की प्रतिभा है, पर घर को सुखी बनाने के लिए वह अपने पति यशपाल से समझौता करती है, फिर भी उसके चारित्रिक गुणों को बिलकुल जंग नहीं लग जाती। उसका स्वतंत्र व्यक्तित्व है। उसे मालूम हो जाता है कि यशपाल अपने साथी चन्द्रभान को एक देश-भक्त विद्रोही को इनाम के लालच में गिरफ्तार कराने भेजता है, तो उसकी स्वाधीन अात्मा तिलमिला उठती है, वह यशपाल से कहती है, "ओह ! यह वाद-विवाद का वक्त नहीं । वादविवाद के लिए फुर्सत भी नहीं। जामो-जानो चन्द्रभान को रोको फौरन रोको.....।" और जब यशपाल नहीं जाता तो वह तुरन्त चन्द्रभान को रोकने के लिए घर से बाहर हो जाती है। वह पुलिस के आने से पहले ही विद्रोही को सचेत करती है । वह भाग जाता है। कचहरी में वह गरीबदास को बचाने के लिए गिरफ्तारी के बारे में भेद खोलते हुए कहती है: "गरीबदास बाँके बिहारी (विद्रोही) को नहीं जानते । ..... 'बाँके बिहारी को भगाने में मेरा दोष है। गरीबदास जी निर्दोष हैं। में दोषी हूँ। आप इन्हें नहीं, मुझे दण्ड दीजिए।" गोविन्ददास जी के नाटकों में कर्ण की द्रोपदी और 'दुःख क्यों?' की सुखदा सशक्त चरित्र हैं। चरित्र-चित्रण में लेखक ऐसे चरित्र निर्मित नहीं कर सका, जो बहुत सबल हों, या जिनमें बहुत गहरे रंग भरे गए हों। 'शशिगुप्त' नाटक 'चन्द्रगुप्त' ही है । वही कथा, वे ही पात्र फिर भी इस नाटक का एक भी चरित्र प्रसाद के चरित्रों की छाया को भी न छू सका। 'शशिगुप्त' का चाणक्य प्रसाद के चाणक्य के सामने निर्बल, और बौना मालूम होता है। यही बात इसके शशिगुप्त में भी है। हैलेन में भी कोई नई करामात लेखक नहीं कर सका। जो गम्भीर्य, गौरव, महानता, प्रताप और तेज प्रसाद के चरित्रों में देखा, उसकी यहाँ कल्पना भी नहीं। सामाजिक नाटकों में भी चरित्र को रंगीनियाँ और विचित्रताए नहीं-जैसी लक्ष्मीनारायण मिश्र के नाटकों में हैं। तो भी लेखक का चरित्र-चित्रण बुरा तो कभी कहा ही नहीं जा सकता-'अच्छा' को और अधिक है। चरित्र-चित्रण की दृष्टि से 'दुःख क्यों?' और 'कर्ण' लेखक की सर्वोपरि रचनाए हैं। कला का विकास श्री गोविन्ददास का प्रथम नाटक 'हर्ष' ५६३५ ईस्वी में प्रकाशित
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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