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________________ १६४ हिन्दी के नाटककार ___ 'दाहर' का दृश्य-विधान विक्रमादित्य से अधिक सरल और स्वाभाविक है । पहले अंक के निर्माण में तनिक भी कठिनाई नहीं। दो बड़े दृश्यों के बीच एक छोटा-सड़क या वन का-दृश्य डालकर उनके निर्माण के लिए समय निकाल लिया गया है। इस नाटक की सम्पूर्ण दृश्यावली रचना की दृष्टि से निर्दोष है। चौथे अंक में एक-दो दृश्य ही गड़बड़ी डालने वाले हैं। इसमें एक दोष है तो यही कि अंक-विभाजन में समय का ध्यान बहुत कम रखा है। पहला अंक ४०, दूसरा ३०, तीसरा ५०, चौथा २५ तथा पाँचवाँ ५ पृष्ठ का है। इसके अतिरिक्त 'दाहर' दृश्य-विधान की सरलता और स्वाभाविकता का विकास होते हुए भी एक निर्बजता है। अधिकतर दृश्यों बैठे-बैठे मंत्रणा होती है, बातचीत चलती, अप्रासंगिक विषय छिड़ते हैं। उनमें से प्रभावशाली दृश्य कम ही हैं। 'दाहर' की सरल दृश्यावली 'सगर-विजय' में फिर लड़खड़ाती-सी दीखती है। पाँचवाँ अंक उकता देने वाली समानता से भरा पड़ा है। लगातार बन्दीगृह के दृश्य-पर-दृश्य सामने आते हैं। प्रथम अंक के प्रथम तीन दृश्य भी, जिनमें पहला-दूसरा तो एक ही समझिये, पर्याप्त कठिनता उपस्थित करते हैं। 'कमला' कई नाटक लिखने के बाद लिखा गया है; पर इसमें भी दृश्यविधान का विकास अभिनयोचित न हो सका। पहला अंक एक दृश्य है। उसमें जिस कमरे का निर्माण है, वह पहले ही बना लिया जायगा तभी पदो उठेगा। इसके बाद दूसरे अंक का पहला दृश्य है गाँव की चौपाल का चबूतरा, एक तरफ अलाव लगा है, एक चटाई पर कई अादमी बैठे हैं। दूसरा दृश्यपहले अंक में दिखाया हुअा कमरा । तीसरा-कोठी के सामने का छोटा बाग ( लॉन )-चारों तरफ गमले रखे हैं, बीच में घास पर दो पाराम कुर्सियाँ श्रादि । तीसरा नाङ्क भी एक दृश्य है। पहले अंक की दृश्य-रचना यदि रहने दी जाय, और वह दूसरे पर्दे के पीछे हो तभी उसे रखा जा सकता है, तो यवनिका गिराकर दूसरे अंक का पहला दृश्य बनाया जा सकता है। इसके बाद दूसरा दृश्य है वही कमरा । पहले दृश्य का पर्दा गिराकर चबूतरा, अलाव, चटाई हटाने में अवश्य कुछ समय लग जायगा । इसके बाद कमरे का दृश्य दिखाया जायगा । कमरे के दृश्य का पर्दा गिराकर अब तीसरा दृश्य बनाने में इतना समय अवश्य लग जायगा कि कार्य-व्यापार में शिथिलता पा जाय । पर कमला का दृश्य-विधान कठिन नहीं है-अभिनय में अधिक गरबड़ी नहीं लायगा। 'मुक्ति-पथ' के पहले अंक के दूसरे, तीसरे, चौथे ६श्य भी लगातार बड़े
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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