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________________ उदयशंकर भट्ट १६५ हैं। दूसरा अंक तो प्राय : बड़े ही दृश्यों से भरा पड़ा है और लेखक ने जैसा निर्देश किया है वैसे दृश्य तो शायद वे स्वयं भी न बना सकें । दूसरे अंक का पहला दृश्य सिद्धार्थ के नगर-प्रवेश का है। लेखक का निर्देश है, "रंगमंच के ऐसे समय दो भाग होंगे। भीतर के भाग में राजकुमार का रथ इस प्रकार हिल रहा हो, जिससे मालूम हो रथ चल रहा है । उसके साथ दो फुट ऊँचे पर्दे पर दुकानों के दृश्य अंकित होंगे । लोग विक्रयार्थ वस्तुएं सजाये बैठे होगे। उसके सामने एक सड़क का दृश्य होगा, जिस पर लोग आते-जाते दिखाई देंगे। सिद्धार्थ के नगर-प्रवेश के कारण नगर सजा हुआ दिखाई देगा...।" दूसरा दृश्य है कपिलवस्तु का संथागार, जहाँ सिंहासन के बराबर धर्माध्यक्ष बैठे हैं। लेखक यथा स्थान बैठे हैं। सिंहासन के समीप सिद्धार्थ का श्रासन है। सिद्धार्थ भी बैठे हैं। अब इनकी रचना पर विचार करें । पहले दृश्य में पूरा रंगमंच घिर जाता है । पहला दृश्य समाप्त होने पर यह दृश्य बनाया जायगा। इसके बनाने में कम-से-कम सात-आठ मिनट अवश्य लग जायंगे । राजसी दृश्य बनाना, उसे सजाना, इतने आसन लगाना-काफी समय चाहिए । रंगमंच यदि पाँच मिनट भी खाली रह जाय तो दर्शक निश्चय ही, हो-हल्ला मचा देंगे, यह ध्रुव सत्य है। और इन दृश्यों को अंक प्रारम्भ होने से पहले बनाने के रंगमंच पर इतना स्थान कहाँ से आ गया ? अब तीसरा दृश्य देखिये । गोपा का प्रसूतिकागार । . यदि इसे दूसरे दृश्य का अभिनय होते हुए बनाया जाय तो इसे दूसरे के पीछे बनाया जायगा । दूसरे दृश्य का पर्दा गिरने के बाद उसका सामाने हटाने में फिर एक-दो मिनट अवश्य लगेंगे। 'शक-विजय' में भी दृश्य-सम्बन्धी त्र टियाँ मिलेंगी-अभिनय की दृष्टि से। पहले अङ्क का पहला, दूसरा और तीसरा दृश्य भी कुछ कठिनाई अवश्य उपस्थित करते हैं, पर उसकी दृश्यावली 'दाहर' को छोड़कर सभी अन्य नाटकों से सरल और सुगम है। जहाँ तक दृश्य-विधान का प्रश्न है, 'दाहर' और 'शक-विजय' का अभिनय हो अवश्य सकता है। अभिनय के लिए कार्य-व्यापार एक अनिवार्य तत्व है। कार्य-व्यापार से ही नाटक में जान पाती है-दर्शकों के मन को बाँधने में कार्य-व्यापार ही सबसे अधिक शक्तिशाली तत्व है। कार्य-व्यापार की भट्टजी के नाटकों में बहुत अधिक कमी है। 'विक्रमादित्य', 'दाहर', 'सगर-विजय' और 'शक-विजय' चारों नाटक युद्ध-प्रधान हैं, तो इन नाटकों में कार्य-व्यापार का खटकने वाला अभाव है। माना कि रंगमंच पर पात्रों की उछल-कूद का
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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