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________________ लक्ष्मीनारायण मिश्र समस्याओं को बुद्धिवादी तरीके से सुलझाते हैं। 'सिन्दूर की होली' की मनोरमा बुद्धिवादी चरित्र का चमकता और गौरवपूर्ण चित्र है। वह मनोजशंकर से कहती है।' __'संसार की समस्याएं, जिनके लिए अाजकल इतना शोर मचा है, तराज के पलड़े पर नहीं सुलझाई जा सकतीं। वे पैदा हुई है बुद्धि से और उनका उत्तर भी बुद्धि से ही मिलेगा ।" मिश्र जी के नारी-चरित्र सबल हैं । उनके अन्दर अपना सशक्त व्यक्तित्व है। चन्द्रकला, मनोरमा, आशादेवी, अश्गरी, ललिता-सभी में अपनाअपना अलग अहं है। चन्द्रकला, मनोरमा, आशादेवी तो नारी-जीवन के अत्यन्त सबल प्रतीक हैं। 'वत्सराज' की वासवदत्ता और पद्मा भी दिव्य नारियाँ हैं । एक पत्नी-धर्म का प्रादर्श तो दूसरी मातृत्व की ममतामयी मूर्ति । कुमार की पद्मा सौतेली माँ है, माँ है, फिर भी कुमार के प्रति उसमें वासवदत्ता से अधिक ममता है। कुमार का गौतम के साथ जान-सुनकर वह पागल-जैसी हो जाती है। __ मिश्र जी के नाटकों के चरित्र यथार्थ जीवन के चित्र हैं। वे मनोवैज्ञानिक भंवर में पड़े जीव हैं। उनमें सभी रंग मिलेंगे-पर उनमें बुद्धि को सक्रियता की अपेक्षा हृदय की धड़कन कम पाई जायगी। अपने अपराधों के प्रति भीतरही-भीतर घुमस तो उनमें है; पर मानसिक द्वन्द्व की उनमें कमी है। कला का विकास मिश्रजी की नाट्य-कला हिन्दी में नया प्रयोग है। 'प्रसाद' और प्रेमी' आदि कलाकारों ने विदेशी कला के स्वस्थ अंग को अपनाया है। उन्होंने भारतीय और पश्चिमी कला का सुन्दर, स्वाभाविक और स्वस्थ सामंजस्य करते हुए भी, प्रमुखता भारतीय नाट्य-कला को ही दी । मिश्र जी ने भारतीय कला को सर्वथा त्यागकर पश्चिमी कला को अपनाया-उसका एक मात्र अनुकरण इनके नाटकों का अङ्क-विभाजन, कथानक, चरित्र-चित्रण सभी पश्चिमी नाटककारों से प्रभावित हैं। मिश्रजी के सभी नाटकों में तीन-तीन अंक हैं और ये अंक ही दृश्य । प्रत्येक नाटक की कथा तीन अंकों में विभाजित है। पर सभी नाटकों में ऐसा नहीं कि, तीन अंक ही तीन दृश्य हों। 'संन्यासी' में एक अंक में ही बीच में दृश्य बदल जाता है। कई-कई दृश्य इसी प्रकार बदल जाते हैं। 'राक्षस का मंदिर' में दूसरा अंक नदी का किनारा है। अंक चल रहा है।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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