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________________ १६२ हिन्दी के नाटककार तो उसने भी और कोई चारा न देखा । पर मुरारीलाल का विचित्र चरित्र केवल कौतूहल ही उत्पन्न करेगा — जीवन की स्वाभाविकता वह उपस्थित न कर सकेगा । 'राक्षस का मन्दिर' की ललिता भी इसी प्रकार की विचित्रता का चित्र है । यही बात 'संन्यासी' के पात्रों में भी पाई जाती है । दूसरी विशेषता मिश्रजी के चरित्रों में है भीतर-ही-भीतर एक प्रकार की घुटन की । सभी के मन में जैसे सघन धुए के बादल जम गए हैं - बारूद का अम्बार लगा है और आशंका है भयानक विस्फोट की । इस दिशा में 'राक्षस का मंदिर' कमजोर नाटक है, इसमें मनोवैज्ञानिक हलचल बहुत कम हैं । 'सिन्दूर की होली' इस चारित्रिक विशेषता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है 1 मुरारीलाल के हृदय में अपराध की बेचैनी घुमड़ती रहती है । चन्द्रकला के हृदय में मनोजशंकर की उपेक्षा और अपने पिता का अपराध काँपता रहता है और मनोजशङ्कर तो भीतर-ही-भीतर घुल-बुलकर बहता रहता है । "मैं आत्मघाती पिता का पुत्र हूँ ।" यह वेदना उसके आहत मन को छोलती रहती है । 'राजयोग' में चम्पा और गजराज के हृदय को भी उनका अपराधी अतीत कचोटता रहता है । 'मुक्ति का रहस्य' की श्राशादेवी भी अपने पाप से भीतर-ही-भीतर भस्म होती रहती है। I इस भीतरी बेचैनी श्रौर घुमस तथा वैचित्र्य के साथ सभी पात्रों में उलझन भरे रहस्य के भी दर्शन होते हैं । ललिता का रघुनाथ से अचानक प्रेम और अन्त में उसकी श्रस्वीकृति, गजराज और चम्पा की माँ का यौनसम्बन्ध, त्रिभुवननाथ और आशादेवी का विवाद, चन्द्रकला का रजनीकांत से प्रेम और मनोजशंकर के प्रति प्रेम को कुचल डालना -खासी उलझनें पैदा करने वाली बातें हैं । सबसे बड़ी उलझन है— चरित्र में सहसा परिवर्तन ! यह सहसा परिवर्तन कहीं-कहीं तो वैज्ञानिक और श्रवाभावि कता की सीमा को पहुँच गया है । परिवर्तन के लिए लेखक स्वाभाविक और विश्वसनीय परिस्थितियों का निर्माण नहीं कर सका । भावुकता की अपेक्षा सभी चरित्रों में बुद्धिवाद का प्राधान्य है । वैसे भावुकता से ये पूर्ण रूप से पीछा नहीं छुड़ा पाये - और यह स्वाभाविकता के विरुद्ध भी है | चन्द्रकला का रजनीकांत के प्रति और ललिता का रघुनाथ के प्रति प्रथम दर्शन में ही प्रेम हो जाता है । जो सस्तो भावुकता भी कही जा सकती है । पर ऐसे चरित्र विरले ही हैं। परिस्थितियों से समझौता, जीवन को सूत्रों में न गलाकर उसे उपयोगी बनाना बुद्धिवादी दृष्टिकोण ही है । चम्पा, आशादेवी, नरेन्द्र मनोरमा आदि सभी चरित्र समाज की
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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