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________________ लक्ष्मीनारायण मिश्र १६१ मिश्रजी पश्चिमी साहित्य-दर्शन से बहुत प्रभावित हैं। यूरोप में अभी कुछ दिन हुए व्यक्ति-चित्र्य ने कलाकारों को बहुत आकर्षित किया था। और इस सिद्धान्त के प्रवर्तक क्रोचे की वहाँ धूम रही थी। यही व्यक्तिवैचित्र्य मिश्र जी के सभी नाटकों के पात्रों में मिलेगा। सामाजिक और विशेषकर वर्तमान जीवन के नाटकों में अतिवादी चरित्र वाले पात्र प्रायः अस्वाभाविक मालूम होते हैं। उनमें दुःख-सुख, गुण-अवगुण, वीरता-कायरता का मिश्रण प्रायः मिलता है। यही मिश्रण मिश्र जी के पात्रों में मिलेगा। 'राक्षस का मन्दिर' का मुनीश्वर एक ओर तो क्रान्तिकारी है, दूसरी ओर सीमा से अधिक काम-पीड़ित । रामलाल पक्का शराबी है, पर अपनी समस्त सम्पत्ति वेश्या-सुधार में दे डालता है। अश्गरी वेश्या है और अन्त में मातृ-मन्दिर की संचालिका बन जाती है। 'राजयोग' के नरेन्द्र और चम्पा में भी यह दुहरा-रंग मिलता है। चम्पा का प्रेमी नरेन्द्र निराश होकर संन्यासी बन जाता है और प्रेम को भूलकर चम्पा और उसके पति शत्रसूदन से कहता है, "यह अपने मन में मान लिया जाय कि हम लोगों का जन्म आज हो रहा है। हम पहले नहीं थे, जो कुछ था, हमारा भूत था; इस धरती पर हम आज उतरे हैं और आज से ही हम लोगों को अपनी यात्रा प्रारम्भ करनी है।" यही वैचित्र्य 'मुक्ति का रहस्य' की आशादेवी में मिलता है। वह उमाशंकर शर्मा को प्यार करती है और उन्हें पाने के लिए उसकी पत्नी को विष देकर मार देने का भी जघन्य कृत्य करती है। पर अन्त में उसे त्यागकर त्रिभुवननाथ के साथ चली जाती है-उस त्रिभुवननाथ के साथ, जिससे उसने विष प्राप्त किया था, जिसे भेद खुल जाने के भय से उसने अपने शरीर का उपभोग करने दिया। 'सिन्दूर की होली' के मुरारीलाल और चन्द्रकला में ही विलक्षण-वैचित्र्य है। मनोजशंकर के पिता का वध उसने अाठ हजार रुपये के लिए किया। उसका हृदय पश्चात्ताप से जर्जर है। पर तुरन्त ही वह रजनीकांत के वध के सिलसिले में चालीस हजार की रिश्वत ले लेता है-और अचानक चन्द्रकला रजनीकांत से प्यार करने लगती है और उसकी विधवा बन जाती है। चन्द्रकला और आशादेवी का यह वैचित्र्य शानदार स्वाभाविकता कहा जा सकता है। चन्द्रकला चे मनोज शंकर की उपेक्षा और अपने पिता मुरारीलाल के पाप का प्रतिशोध इस भाँति कर दिया। नारी के सजग, सशक्त अन्त का परिचय दिया। श्राशादेवी सहसा परिवर्तित परिस्थिति की विवशता है। जब वह शारीरिक रूप में त्रिभुवनाथ से इस्तेमाल कर ली गई
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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