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________________ गोविन्दवल्लभ पन्त १०७ सोचती । अन्त में विनोदचन्द्र के रूप में उसकी रक्षा करती है, उसे मुकद्दमे से बचाती है और उसकी मदिरा-पान की आदत भी धीरे-धीरे छुड़ा देती है । मोहनदास के प्रति उसके हृदय में न कभी रोष होता है, न घृणा । सदा उसके सुख की कामना और रक्षा की चेष्टा वह करती है। पद्मावती भी इस दिशा में श्रादर्श है। उदयन की इच्छा ही उसकी इच्छा है, उसकी प्रसन्नता ही उसकी प्रसन्नता । “स्वामी की इच्छा और उसकी पूर्णता के बीच में मेरा कुछ भी अस्तित्व न हो ।' में उसका आत्म-विसर्जन बज रहा है। जब मागंधिनी के षड्यन्त्र के कारण उदयन उससे रुष्ट होकर उसका वध कर डालना चाहता है, तो यह स्वेच्छा से मरने को प्रस्तुत होते हुए कहती है, “मैं प्रति मावत् अचल होकर इस छिद्र को अपने अग से ढक लूगी कि लक्ष्य-भ्रष्ट न हो।" __'राजमुकुट' की शीतल सेनी और 'अन्तःपुर का छिद्र' की मागंधिनी कठोर नारी के सबल और अत्यन्त प्राणवान चरित्र हैं। लेखक ने उनके ऐसे होने का कारण भी बता दिया है । विक्रम द्वारा शीतल सेनी की उपेक्षा और अमिताभ द्वारा मागंधिनी का तिरस्कार--उससे विवाह न करना। "अपने वंश को याद कर नीच दासी' विक्रम के ये शब्द शीतल सेनो को प्रतिशोध के पथ पर पहुँचा देते हैं। और अमिताभ का बढ़ता हुश्रा प्रभाव पद्मावती द्वारा उसकी प्रशंसा मागंधिनी के हृदय में दबी आग को दहका देता है। दोनों ही विनाश और प्रतिशोध के पथ पर बढ़ चलती हैं। शीतल सेनी में राज माता बनने की महत्त्वाकांक्षा जाग जाती है। वह षड्यन्त्र रचती है। रणजीत से मिलकर बनवीर की हत्या करने का अभिनय करा, उसे विक्रम के विरुद्ध कर देती है । बनवीर को भड़काते हुए कहती है, "तुम पर माता का कुछ भी ऋण न रहे, जाग्रो इसी प्रकार विक्रम की खोज करो। उसी ने तुम्हारी माता को वेश्या कहा है। उस अभिमान-भरे मस्तक को धड़ से अलग करो।" शोतल सेनी के हृदय में रक्त की प्यास और हत्या की कामना इतनी बढ़ जाती है कि वह पागल-सी रहती है, वध और विनाश देखने के लिए । 'न्याय और नाते का कुछ भी सम्बन्ध नहीं। विक्रम का वध करो और रक्त सूखने से पहले उसी कटार से उदय---।" शीतल सेनी की आकांक्षा विक्रम और पन्ना के लड़के की हत्या और मेवाड़ में विनाश का खेल खेलने से तृप्त होती है। एक नारी कैसे हत्या, अपराध, विनाश की सृष्टि करती है, यह शीतल सेनी के चरित्र से स्पष्ट है।
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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