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________________ १०८ हिन्दी के नाटककार मागंधिनी का चरित्र भी शीतलसेनी के समान ही द्वष-प्रज्वलित, ईर्ष्या-उत्तेजित, घृणा से जर्जर है। एक नारी अपने तिरस्कार का प्रतिशोध लेने के लिए क्या कुछ कर सकती है, यह मागंधिनी बताती है। मागंधिनी अपने तिरस्कार को स्मरण करके कहती है, "इस निर्धन की कन्या को वत्सराज के भवन में स्थान इसीलिए मिला कि रूप की पहली हार भूल सकू। पद्मावती, तुम न भूलने दोगी ! इस संन्यासी से जितना दूर जाना चाहती है, वह उतना ही निकट खड़ा दिखाई देता है........सिद्धार्थ के साथ पद्मावती भी है........ तब एक ही उपाय से ये दोनों बाधाएं दूर हों।" और मागंधिनी ने अभिताभ तथा पद्मावती दोनों के विरुद्ध ही उदयन को भटकाया। दोनों को ही उदयन द्वारा दण्ड दिलाने-मृत्यु-दण्ड दिलाने का प्रयत्न किया। ____ मागंधिनी प्रतिशोध के नशे में नारीत्व के पवित्र कर्तव्य को भूल गई। उसने षड्यन्त्र रचने प्रारम्भ किये । उसने यह प्रकट किया कि छिद्र से पद्मावती अभिताभ को देखा करती है-वह अभिताभ को इस भवन में भी लाना चाहती है। उस पर प्राकर्षित है। उसने मालिन को अपना हार उत्कोच में दे, उसके साथ मिलकर षड्यन्त्र किया। एक सर्प मँगाया और उसे हस्तीस्कंध वीणा में रख दिया। जब वह सर्प उदयन द्वारा वीणा बजाये जाते हुए बाहर निकला तो उदयन को बताया कि किस प्रकार पनावतो उसे मारना चाहती है । मागंधिनी ऐसे समय प्रेम का कंसा अभिनय करती है, "मुझे अपने जीवन की चिन्ता नहीं, उसका त्याग करके भी आपको रक्षा करूँगी, इसे वह नहीं जानती। शिला दूर होगी, तो मैं अपनी मुष्टिका से इसका विष भरा माथा कुचल दूंगी।" अपने कृत्रिम चरित्र से उदयन को प्रभावित करके मागंधिनी ने अपनी इच्छा प्रकट की "तो अभी कुछ भी क्षति नहीं हुई। राज-पथ के अपराधी (अभिताभ) को भी दण्ड मिले और राज-भवन का दोष भी न छूटे।" इसी एक कामना-पूर्ति के लिए मार्गधिनी ने क्या कुछ नहीं किया; पर वह पूर्ण न हो सकी, सर्प द्वारा उसी की मृत्यु हो गई। मागंधिनी इतिहास की गोद में एक नारी का अंगार भरा विनाशक चरित्र छोड़ गई। कला का विकास पन्त जी की नाटक लिखने की कला अपने रूप में विकसित हुई। संस्कृतनाट्य-कला का प्रभाव उनको कला पर स्पष्ट है । पश्चिमी शैली और टेकनीक को उन्होंने बहुत स्वस्थ रूप में अपनाया है। पारसी-रंगमंच का भी प्रभाव
SR No.010195
Book TitleHindi Natakkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaynath
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1952
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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