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________________ तीसरा अध्याय ] अन्तर्जगत् । ४७ सकती। अन्य प्रकारके तत्त्वोंके विपरीत कल्पना की जा सकती है। २ और ३ का जोड़ ५ के सिवा और कुछ होनेकी कल्पना हम नहीं कर सकते। किन्तु लोहा ऐसा हो सकता था जो जलमें उतराता, यह कल्पना हम कर सकते हैं। कोई कोई कहते हैं कि इन दोनों प्रकारके तत्त्वोंके मूलमें कोई भेद नहीं है, मगर हाँ एक श्रेणीके तत्त्वमें कभी कोई व्यतिक्रम नहीं देखा, इसी कारण उसके विपरीत कल्पना हम नहीं कर सकते, और दूसरी श्रेणीके तत्त्वमें प्रकारान्तरसे व्यतिक्रम देखा जाता है, और इसी कारण उसके विपरीत कल्पना करना असाध्य नहीं होता। किन्तु यह बात ठीक नहीं जान पड़ती । २ और ३ के जोड़से ५ के सिवा और कुछ नहीं हो सकता, यह ध्रुव धारणा वारम्वारकी परीक्षाका फल नहीं है। और, यद्यपि किसी स्थल पर ऐसा देखा जाता कि किन्हीं विशेष प्रकारकी वस्तुओंमेंसे २ और ३ को एकत्र करते ही उनसे अलावा वैसी ही और एक वस्तु उत्पन्न होकर वस्तुकी संख्या ६ कर देती, तो भी हम यह न कहते कि २ और ३ का जोड़ ६ होता है। हम वहाँ पर भी कहते कि २ और ३ मिल कर ५ होते हैं, लेकिन हाँ, साथ ही साथ और एक उनसे अतिरिक्त वस्तु उत्पन्न होती है। पक्षान्तरमें, अनेक स्थलों पर कभी कोई व्यतिक्रम न देख कर भी हम व्यतिक्रमकी कल्पना कर सकते हैं, जैसे, लोहेका पानीमें उतराना। __ यहाँ पर प्रश्न होता है, ज्ञानके कहीं निर्विकल्प और कहीं सविकल्प होनेका कारण क्या है ? इस प्रश्नका उत्तर इस तरह दिया जा सकता है कि, जैसे-अमर किसी द्रव्यके लक्षणमें जो गुण निहित है, वह गुण उस द्रव्यमें है, यह कहा जाय, तो उस बातके सम्बन्धमें हमारे जो ज्ञान उत्पन्न होगा, वह अवश्य ही निर्विकल्प ज्ञान है। और, उसके विपरीत बातकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकेगी, क्योंकि कोई द्रव्य अपने लक्षणके विपरीत नहीं हो सकता । यह बात ठीक जरूर है, लेकिन इसके द्वारा निर्विकल्प और सविकल्प ज्ञानका कारण नहीं निर्दिष्ट हुआ, क्योंकि यद्यपि "२ और ३ का जोड़ ५ होता है" इस जगह पर २ और ३ के जोड़का लक्षण ५ होना है, ऐसा कहा जा सकता है, किन्तु " समकोणवाले त्रिभुजके कर्णमें आंकत समबाहु समकोणवाला चतुर्भुज अपनी अन्य दोनों भुजाओंमें अंकित वैसे ही दो * Mill's Logic, Bk. II, Ch. V देखे।।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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