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________________ ४६ ज्ञान और कमे। [प्रथम भाग साधारण तत्त्वका अनुमान करें कि कोई दो पर-पर संख्याओंके योगसे जो संख्या होती है उसका १ के सिवा और भाजक नहीं होता, तो यह अनुमान स्पष्ट ही भ्रान्त है। कारण, उक्त तीनों विशेष दृष्टान्तोंके बाद जो दृष्टान्त आता है वह ४ और ५ का योग है। उसका योगफल ९ की संख्या है और उसका १ के अलावा ३ भी एक भाजक है । लेकिन जो उक्त तीन विशेष दृष्टान्तोंसे यह साधारण तत्त्व अनुमान किया जाय कि कोई दो पर-पर संख्याओंको जोड़नेसे योगफल अयुग्म होगा, तो यह अनुमान सिद्ध है। कारण इस स्थलपर विशेष तत्त्वोंके बीच यह बन्धन है कि दो पर-पर संख्याओंमें एक युग्म और दूसरी अयुग्म अवश्य ही होगी, और युग्म-अयुग्मका जोड़ अवश्य अयु. ग्म ही होगा। अतएव अगर विशेष तत्त्व असम्बद्ध होते हैं, अर्थात् उनमें कोई बन्धन नहीं होता, तो उनसे किसी साधारण तत्त्वका अनुमान सिद्ध नहीं होता। ३-उपर कहे गये अनुमित साधारण तत्त्वमें व्यतिक्रम भी देखा जाता है। जैसे लोहे या पीतलको ठोस पिण्डके आकारमें न लेकर, उसकी कोई भीतरसे पोली चीज गढ़कर पानीमें छोड़ी जाय तो वह ऊपर तैरने लगेगी। इस व्यतिक्रमकी पर्यालोचना करनेसे और एक साधारण तत्त्व निरूपित होता है । जैसे, कोई वस्तु अगर ऐसे आकारमें गढ़ी जाय कि अपने बोझकी अपेक्षा अधिक वजनके जलको हटा सके, तो वह वस्तु जलमें उतराने लगेगी। विशेष तत्त्वसे साधारण तत्त्वके अनुमानके सम्बन्धमें अनेक सूक्ष्म नियम हैं, उनकी आलोचना यहाँ स्थानाभावसे नहीं की गई। प्रत्यक्षकी अपेक्षा अनुमानके द्वारा बहुतसा और अधिक ज्ञान पाया जाता है। बहिर्जगत्से सम्बन्ध रखनेवाले अधिकांश और अन्तर्जगत्से संबंध रखनेवाले प्रायः सभी ज्ञान अनुमानसे प्राप्त हैं। साधारण या विशेष तत्त्वसे अनुमान किये गये तत्त्वको छोड़कर और भी कुछ तत्त्व हैं, जिनका निरूपण आत्मा अपनेहीसे करता है, और उसे स्वतःसिद्ध तत्त्व कहते हैं। जैसे किन्हीं दो वस्तुओंमेंसे हरएक वस्तु किसी तीसरी वस्तुके समान हो, तो वे दोनों वस्तुएँ समान मानी जायँगी । स्वतःसिद्धःतत्त्व और गणितशास्त्रके तत्त्व, जैसे, २ और ३ का जोड़ ५ होता है, इन सब तत्त्वोंके सम्बन्धमें हमारे जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह निर्विकल्प ज्ञान, है, अर्थात् उसमें कोई संशय नहीं रहता, और उसके विपरीत कपना नहीं की जा
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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