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________________ पाँचवाँ अध्याय ] राजनीतिसिद्ध कर्म । ३४७ महती देवताह्येषा नररूपेण तिष्ठति। (मनु.१८) अर्थात्-यह ( राजा ) नररूपमें महती देवता स्थित है। राजाको देवताके समान संमानके योग्य कहनेका कारण यह है कि राजाके न रहनसे देश अराजक हो जाता है, और वहाँ रहनेवाले सदा सन्त्रस्त रहते हैं। मतलब यह कि देशरक्षाके लिएही राजाकी सृष्टि हुई है (२)। राजा अगर भक्तिके योग्य न हो, तो किस तरह उसके प्रति भक्तिका उदय होगा? इस प्रश्नके उत्तरमें कहा जा सकता है कि राजभक्ति जो है वह किसी व्यक्तिविशेषके लिए नहीं, राजपदके लिए होती है। वह पद सर्वदा ही भक्तिके योग्य है । जो आदमी उस पद पर बैठा है, वह अगर अपने गुणों से भक्तिके योग्य हो, तो प्रजाके लिए बड़े ही सुखकी बात है । राजाके प्रति प्रजाका भक्ति करना, केवल राजाके हितके लिए नहीं, प्रजाके अपने हितके लिए भी, कर्तव्य है। कारण, राजाके प्रति प्रजाकी भक्ति न रहनेसे फल यह होगा कि प्रजा राजाकी आज्ञाके पालनमें तत्पर न होगी, जिससे राजाके लिए राज्यशासन कठिन हो जायगा, राज्यमें विश्रृंखलता उपस्थित होगी, और राज्यकी शान्तिरक्षा तथा प्रजा-वर्गकी सुख स्वच्छन्दताका सम्पादन असंभव हो जायगा। राजाकी आज्ञा पालनीय है। राजा अगर कोई अनुचित आज्ञा दे, तो प्रजाको क्या करना चाहिए? इस प्रश्नके उत्तरमें कहा जा सकता है कि वह आज्ञा अगर धर्मनीतिके विरुद्ध हो, तो प्रजा उसका पालन करनेके लिए वाध्य नहीं होगी। किन्तु सौभाग्यवश प्रायः उस तरहका कर्तव्य-सङ्कट उपस्थित नहीं होता। अधिकांश स्थलों में अनुचित आज्ञाका अर्थ है अहितकर आज्ञा । जब राजाके शासनकी अधीनतामें रहकर प्रजा अनेक उपकार पाती है, तो कभी एक अहितकर आज्ञाके लिए राजाके विरुद्ध आचरण करना कदापि प्रजाका कर्तव्य नहीं है। हाँ, उस आज्ञाको बदलानेके लिए नियम-पूर्वक न्यायके अनुसार चेष्टा करना उचित है, उसमें कोई दोष नहीं है। किन्तु जबतक वह आज्ञा बदली न (२) मनुसंहिता ७।३ देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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