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________________ ३४६ ज्ञान और कर्म। [ द्वितीय भाग सिद्ध करनेका यह उपाय कहाँतक न्याय-संगत और वास्तवमें हितकर है. इसके बारेमें मत-भेद है । मगर तो भी अनेक सभ्य देशोंमें उक्त उद्देश्यकी सिद्धिके लिए यही उपाय काममें लाया जाता है (१)। नशीली चीजोंका प्रचार रोकनेकी चेष्टा । नशीली चीजोंके ऊपर कर लगाकर राज्यकी आमदनी बढ़ाना राजाके लिए कहाँतक न्याय संगत है, यह प्रश्न भी इस जगह उठ सकता है। नशीली चीजोंका सेवन सभी जगह अनिष्ट-कर है, और गर्म दशोंमें तो उनके सेवनका कोई प्रयोजनही नहीं है। जिस चीजका सेवन तरह तरहके रोगोंकी और अशान्तिकी जड़ है, और जिसके अधिक सेवनसे मनुष्य पशुकी अवस्थाको पहुँच जाता है, उसका (दवाके लिए छोड़कर अन्य कारणसे ) बेचना-खरीदना, कमसे कम गर्म दशोंमें, राजाकी आज्ञासे निषिद्ध होना चाहिए। अनेक सज्जन कहते हैं कि ऐसे मादक पदार्थका क्रय-विक्रय स्पष्टरूपसे निषिद्ध न होकर क्रमशः प्रकारान्तरसे निषिद्ध होनाही युक्ति-सिद्ध है। उनकी युक्ति यह है कि जबतक लोगोंमें मादक सेवनकी प्रवृत्ति प्रबल रहगी तबतक उसके क्रय-विक्रयका निषेध निष्फल है, लोग उसके गुप्तरूपसे तैयार करेंगे और बेंचेंगे। किन्तु एक तरफ सुशिक्षाके द्वारा और दूसरी तरफ कर लगानेसे वह प्रवृत्ति जब क्रमशः घट जायगी, तब निषेधके बिनाही निषेधका फल प्राप्त होगा। यदि उस आशाकी प्रतीक्षा करके रहना हो, तो राजाको ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि राजकर्मचारी लोग इसका विशेष यत्न करें कि मादक पदार्थों का क्रय-विक्रय कम हो, और उसके व्यवहारकी मात्रा घट जाय। ४ राजाके प्रति प्रजाका कर्तव्य । राजाके प्रति प्रजाका प्रथम कर्तव्य है भक्ति दिखलाना । मनु भगवान्ने. कहा है (१) इस सम्बन्धमें Mill's Principles of Political Economy, Bk. V. Ch. x और Sidgwick's Principles of Political Economy, Bk. III, Ch. V देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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