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________________ दूसरा अध्याय ] कर्तव्यताका लक्षण । २०१ है। किन्तु बड़ेपन-छोटेपनका भेद निश्चित करना भी अनेक जगह कठिन है। जैसे लगभग तुल्य परिमाणकी एक गोल और एक चतुष्कोण वस्तुमें कौन बड़ी है और कौन छोटी यह देखते ही सहजमें नहीं कहा जा सकता। यदि सुखवाद या हितवाद प्रश्न करे कि यह बात क्या सत्य नहीं है कि सुख या हित न्याय-कर्मका और असुख या अहित अन्यायकर्मका निरवच्छिन्न फल है ? और यह बात सत्य होनेपर सुखकारिता और असुखकारिता, अथवा हितकारिता और अहितकारिताको क्या कर्तव्यता और अकर्तव्यताका नामान्तरनहीं कहा जा सकता?, तो इसका उत्तर यह है कि, पहले तो, सुख या हित न्यायकर्मका और असुख या अहित अन्यायकर्मका निश्चित फल नहीं है। अनेक स्थलों में न्यायकर्मका फल सुख और अन्यायकर्मका फल दुःख है। किन्तु अनेक स्थलों में फिर इसके विपरीत भी देखा जाता है। झूठ बोलना अन्याय है, किन्तु ऐसे दृष्टान्त अनेक देखे जाते हैं कि जहाँ मिथ्यावादी मनुष्य अपनेको या अन्यको सुखी कर रहा है। दूसरे, सुखकारिता या हितकारिता न्यायकर्मका निश्चित फल होने पर भी, वह न्याय और कर्तव्यताका नामान्तर नहीं हो सकती । एक ही वस्तु के दो मौलिक गुण रहने पर यह कहना संगत नहीं है कि उनमें से एक दूसरेका नामान्तर है । जल तरल और स्वच्छ है, किन्तु इसी लिए स्वच्छताको तरलताका नामान्तर कौन कहेगा? कर्तव्यकर्मका फल हितकर होनेके कारण यह कहना कभी युक्तिसिद्ध नहीं है कि कर्तव्यता और हितकारिता दोनों एक ही गुण हैं । एक स्थूल दृष्टान्तके द्वारा यह विषय कुछ स्पष्टरूपसे समझाया जा सकता है । अनेक बड़ी वस्तुएँ स्थितिशील और अनेक छोटी वस्तुएँ गतिशील देखी जाती हैं, किन्तु यह देखकर अगर कोई कहे कि बड़ापन और स्थितिशीलता या छोटापन और गतिशीलता एक प्रकारके गुण हैं तो उसकी यह बात जैसे असंगत है, वैसे सुखकारिता और कर्तव्यताको कर्मका एक ही प्रकारका गुण कहना उससे कम असंगत नहीं है। उसके बाद अब यह देखा जाय कि जगत्के कार्योंसे इस विषयका क्या आनुपंगिक प्रमाग मिलता है। प्रवृत्तिवाद, निवृनिवाद और सामञ्जस्यवाद, इन तीन मतोंके माननेवाले लोग कहेंगे कि बड़ापन-छोटापन आदि जैसे वस्तुके मौलिक गुण हैं, न्याय-अन्याय अगर कर्मके वैसे ही गुण होते, तो भिन्न भिन्न समा
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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