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________________ १९४ ज्ञान और कर्म। [द्वितीय भाग शिक्षाका और पारिपाश्विक अवस्थाका फल है। हाँ, कर्तामें सोचनेकी और चेष्टा करनेकी क्षमता अवश्य है। २--कर्ताको कर्मका शुभाशुभ फल, अर्थात् सत्कर्मके लिए आत्मप्रसाद और पुरस्कार आदि, और असत्कर्मके लिए आत्मग्लानि और दण्ड आदि, भोगना होता है। लेकिन वह शुभाशुभ फलका भोग कर्ताकी संबर्द्धना या शास्ति (सजा ) के लिए नहीं, बल्कि उसके संशोधन और उन्नतिके लिए है। ३-कर्ताके कर्मफलका परिणाम अनन्त दुःख नहीं, अनन्त सुख है । कर्मफलभोगके द्वारा, शीघ्र हो या विलम्बमें हो, क्रमशः कर्ताका संशोधन और उन्नति-साधन होकर परिणाममें मुक्तिलाभ होगा। चेष्टा या प्रयत्न। ऊपर कहा गया है कि कर्ताके चेष्टा करनेकी क्षमता है। कर्ताकी स्वतन्त्रता नहीं है, लेकिन चेष्टा करनेकी क्षमता है-इसके क्या माने ? इस जगह पर किसी किसीके मनमें यह संशय उठ सकता है। अतएव उसका निराकरण करनेके लिए. चेष्टा या प्रयत्नके सम्बन्धमें दो-एक बातें कहना आवश्यक है । जड़वादियोंके मतमें चेष्टा केवल देहका कार्य है । शायद वे लोग कहेंगेबहिर्जगत्के विषयों द्वारा स्पंदनको प्राप्त हुई ज्ञानेन्द्रियकी क्रियासे, अथवा मस्तिष्कके अन्तर्निहित बहिर्जगत्के पूर्वक्रियाजनित कुञ्चनसे, जब मस्तिष्क संचालित होता है, तब वह संचालन ( हरकत ) स्नायुजालमें उत्तेजना उत्पन्न करता है, और उसके द्वारा कर्मेन्द्रियाँ कर्ममें प्रवृत्त होती हैं। उसी प्रवर्तनको चेष्टा या प्रयत्न कहते हैं। चैतन्यवादी और अद्वैतवादी लोग यह स्वीकार करते हैं कि चेष्टामें देहका कुछ कार्य है, किन्तु उनके मतमें चेष्टा जो है वह मूलमें आत्माका कार्य है, वह आत्माकी इच्छासे उत्पन्न है, और आत्मा ही उस कार्यमें देहको परिचालित करती है । स्वतन्त्रतावादी लोग कहते हैं, वह इच्छा स्वाधीन है, अर्थात् इच्छा ही इच्छाका कारण है । अस्वतन्त्रतावादी लोगोंके मतमें वह इच्छ। आत्माकी, अर्थात् पूर्व-स्वभाव, पूर्व-शिक्षा और पारिपाश्विक अवस्थाका फल है । स्वतन्त्रतावाद और अस्वतन्त्रतावादमें इतना ही भेद है। अतएव यह 'सर्ववादिसंमत है कि चेष्टा कर्ताका कार्य है और कर्ताकी स्वतन्त्रता रहे या न रहे, उससे कुछ हानि नहीं। मगर कर्ता जो है वह चेष्टा करनेमें क्यों प्रवृत्त
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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