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________________ पहला अध्याय ] कर्त्ताकी स्वतंत्रता । और अच्छे परोसियोंके बीचमें रक्खा जाय । हमारे पूर्वजन्मके कर्मफलभोगके सम्बन्धमें चाहे जितना मतभेद क्यों न रहे, यह सभीको स्वीकार करना होगा कि हमारे जन्मके पहले हमारे पूर्वपुरुष जिन कमाको करते हैं उनका फल हमें भोगना पड़ता है। __ हम जबतक संसारके बन्धनमें बंधे रहेंगे, जबतक देहयुक्त रहनेके कारण हमें बहिर्जगत्की क्रियाके अधीन रहना होगा, और जबतक यथार्थ हिताहितके बारेमें जानकारी न होनेके कारण हम अतजगत्की असंयत प्रवृत्तिकी अधीनता छोड़ नहीं सकेंगे, तबतक हमारे स्वतन्त्र होनेकी संभावना नहीं है। ज्ञान जैसे जैसे क्रमशः बढ़ता रहेगा और पूर्णता प्राप्त करता रहेगा, वैसे ही वैसे हम अपना यथार्थ हिताहित देख पावेंगे, साथ ही सब आन्तरिक वृत्तियाँ संयत हो आवेंगी, और हमारी अन्तर्जगत्की अधीनता चली जायगी। दुराकांक्षा निवृत्त होनेसे साथ ही साथ बहिर्जगत्की अधीनता भी घटती जायगी । हाँ, देहके अभावकी पूर्तिके लिए वह कुछ कुछ अवश्य बनी रहेगी। जब वह देहबन्धन भी चला जायगा, तभी हम संपूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकेंगे। __ कर्ताकी स्वतन्त्रताका विषय लेकर प्रायः सभी देशोंमें बहुत कुछ आन्दोलन और मतभेदकी सृष्टि हुई है। इस देश (भारत) में अदृष्टवाद और पुरुषकारवाद दोनों ही मत हैं (१)। पाश्चात्य पंडितोंमें कोई कोई स्वतन्त्रतावादी और कोई नियतिवादी अथवा निर्बन्धवादी हैं (२)। अस्वतन्त्रतावादका स्थूल मर्म ।। यह विषय दुरूह है। इस सम्बन्धमें ऊपर जो कुछ कहागया है, उसका संक्षेपमें स्थूल तात्पर्य यह है १-कर्ताकी स्वतन्त्रता नहीं है, उसकी इच्छा स्वाधीन नहीं है-अर्थात् इच्छा ही उस इच्छाका कारण नहीं है। वह इच्छा कर्ताके पूर्व-स्वभाव, पूर्व (१) दैव और पुरुषकारके सम्बन्धमें महाभारतके अनुशासन पर्वका छठा अध्याय देखो। (२) इस सम्बन्धमें Sidgwick's Methods of Ethics, Bk. I, ch. V; Green's Prolegomena of Ethics, Bk. II, ch. I; और Fowler and Wilson's Principles of Morals, Pt. II, ch. IX देखो। ज्ञान.-१३
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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