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________________ पहला अध्याय ] कर्त्ताकी स्वतंत्रता। हुआ, इसका कारण खोजने ही से स्वतन्त्रतावाद और अस्वतन्त्रतावादका अन्तर देखनेको मिल जाता है। हम अपने अपूर्ण ज्ञानसे यह नहीं जान पाते कि आत्मा किस तरह देहको अपनी चेष्टामें परिचालित करती है। देह और आत्माका संयोग किस तरह का है, यह जाने विना इस प्रश्नका उत्तर नहीं दिया जा सकता । तो भी यहाँतक जाना गया है कि मस्तिष्क और स्नायुजाल ही देहको कार्यमें चलानेके यन्त्रस्वरूप हैं। वह यन्त्र विकल होने पर आत्मा जो है वह देहके द्वारा किसी भी चेष्टाको सफल नहीं कर सकती। लेकिन हाँ, देहके अवश होनेपर भी आत्मा मन ही मन चेष्टा कर सकती है । इसके द्वारा यह प्रमाणित होता है कि चेष्टा जो है वह मूलमें आत्माहीका कार्य है।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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