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________________ ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग नेके लिए उत्तेजित होते हैं । किन्तु केवल इसी लिए यह कभी नहीं कहा जासकता कि विप्लव अच्छी चीज है । अन्धप्रकृति ( Nature ) के कार्यसे आंधी और बहिया आदि आती हैं । अज्ञ जनसाधारणकी उत्तेजित और असंशय प्रवृत्तिकी प्ररोचनासे विप्लव होता है । और, उन सब अशु. भोंसे शुभ भी होता है। लेकिन उसी तरह अशुभसे शुभसंघटनकी ज्ञानकृत चेष्टा कभी अनुमोदनके योग्य नहीं है। ज्ञानका कार्य है अन्धशक्तिको सुमार्गमें चलाना । अज्ञ जीव केवल प्रवृत्तिकी प्ररोचनासे कार्य करता है, ज्ञानी जीव ज्ञानके द्वारा प्रवृत्तिको संयत और शासित करके काम करता है। जो अपनेको ज्ञानी समझकर अभिमान करते हैं, समाज और शासनप्रणालीके संस्कारक होना चाहते हैं, वे कभी अन्ध प्रकृतिकी दोहाई देकर, अशुभके द्वारा शुभको लावेंगे-यह कहकर, उनका उद्देश्य चाहे जितना अच्छा क्यों न हो, बुरे उपायके अवलंबनको उचित नहीं कहा जा सकता। अगर कोई कहे कि अन्ध प्रकृतिक परिचालक वही अनन्त ज्ञानमय चैतन्य हैं, किन्तु तो भी प्रकृतिके कार्यमें अशुभके द्वारा शुभ होता है, तो इसके उत्तरमें यह कहा जा सकता है कि अनन्त ज्ञान अभ्रान्त है, उसके द्वारा संचालित प्रकृतिके अशुभ कार्यसे ऐसा कोई शुभ फल निश्चय ही होगा जो हमारी अल्पबुद्धि नहीं जान सकती। किन्तु यही कहकर भ्रान्त अदूरदर्शी मनुष्यके लिए अनिश्चित शुभ फलकी आशाले निश्चित अशुभकर कार्यमें प्रवृत होना कभी उचित नहीं हो सकता। हम सब अपने कामके लिए जिम्मेदार हैं, कर्मका फल हमारे वशमें नहीं है। अच्छे उपायके द्वारा शुभ फल घटित करने में असमर्थ होने पर बुरे उपायके द्वारा उसे पानेकी चेष्टा छोड़कर चुप रहना ही हमारा एक मात्र कर्तव्य है। जातीय विवाद-युद्ध । ज्ञानकी वृद्धि होने पर भी सब स्थलोंमें पृथ्वीका दुःख दूर नहीं किया जा सकता। इस बातका एक और दृष्टान्त देंगे। यह बात बहुत बड़ी है, इस लिए वह कुछ संक्षेपमें संकोच के साथ ही कही जायगी। व्यक्तिगत नीतिके अनुसार पराया धन छीनना और दूसरेको सताना, दोनों ही दोषकी बातें हैं । यह सिद्धान्त सर्ववादिसम्मत है। जातीय नीतिमें भी इस बातकी सचाईको सब लोग स्वीकार करते हैं। किन्तु दो जातियोंमें परस्पर विवाद होने पर; युद्ध अर्थात् परस्पर सताना और या पर
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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