SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छठा अध्याय ] ज्ञान-लाभके उपाय । १२९ रहेगी । बस, दोनों प्रकारकी भिन्नरूप समष्टिकी संख्या अवश्य ही सनान होगी । इस पिछले ढंग से समझाया जाय तो यह तत्त्व अत्यन्त मोटी बुद्धिवाले विद्यार्थीकी भी समझमें अनायास आजायगा । दुःखका विषय यह है कि सब बातें इस तरह विशदरूपसे समझाई नहीं जा सकतीं । जो हो, प्रत्येक विषयकी विशद व्याख्याका अनुसन्धान करना शिक्षकका एक कर्तव्यकर्म है । इस तरहकी व्याख्याका जितना प्रचार होगा उतनी केवल शिक्षा ही नहीं सहज होगी, बल्कि अनेक विषयों में समाजके अनायासलब्ध ज्ञानका परिमाण भी बढ़ जायगा । शिक्षाका विषय सहज में याद रखने और समझनेके इशारेका एक दृष्टान्त दिया जाता है 1 अक्षरके उच्चारणस्थानके निणयक सम्बन्ध में संस्कृत व्याकरण में जो नियम हैं। उन्हें समझने और याद रखने में बालकों को बहुत परिश्रम करना पड़ता है । किन्तु कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दन्त, ओष्ठ, ये कई एक स्थान बता कर इन स्थानोंसे जिनका उच्चारण होता है उन अक्षरोंका स्पष्ट उच्चारण करके विद्यार्थीको सुनानेसे व्याकरणका यह विषय बहुत ही सहजमें उसकी समझमें आ जायगा । इसके साथ साथ अगर उसे यह इशारा बता दिया जाय कि कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दन्त और ओष्ठ, ये पाँचों उच्चारणस्थान जिस तरह क्रमशः शरीरके भीतरसे बाहरकी ओर आते हैं, उन उन स्थानोंसे जिनका उच्चारण होता है वे अक्षर भी ( दो-एक अतिक्रमोंको छोड़कर ) उसी तरह वर्णमाला में उसी क्रमसे रक्खे गये हैं । जैसे तालु मूर्द्धा ऋ ऋ टवर्ग तवर्ग ENTER र ल ष कण्ठ भ भा कवर्ग दन्त ऌ ल ओष्ठ उ ऊ पवर्ग व चवर्ग य ट श स इस तरह अगर बालकको शिक्षा दी जाय तो वह व्याकरणके इस प्रकरको बहुत ही सहज में समझ लेगा और याद रक्खेगा, कभी नहीं भूलेगा । शिक्षा में आनन्द उत्पन्न करनेके लिए अनेक स्थानोंमें अनेक पद्धतियोंका सहारा लिया गया है । उसका मूलसूत्र है शिक्षाको खेलका रूप देना । यूरोपमें ज्ञान०-९
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy