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________________ १२८ ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग ऊँचे दर्जे की बात है, और यद्यपि प्रवीण शिक्षादाताको यह याद रखकर अपनेको उत्साहित करना चाहिए, किन्तु नवीन शिक्षा के लिए यह बोधगम्य विषय नहीं है। उसके लिए दो उपायोंका आश्रय लेना चाहिए । एक तो श्रमकी कमी करना और दूसरे शिक्षाके द्वारा उसके मनमें आनन्द उत्पन्न करना। उस श्रमलाघव और आनन्द उत्पन्न करनेके लिए जिन सब नियमोंका अनुसरण किया जा सकता है वे दो तरहके हैं। कुछ साधारण हैं और कुछ देश-काल पात्र और विषयके भेदसे परस्पर विभिन्न हैं। शिक्षार्थीक श्रमलाघवका एक साधारण उपाय है--शिक्षाके विषयोंमें अनावश्यक जटिलताका त्याग । किन्तु इसी लिए आवश्यक जटिल बातको छोड़ देनेसे काम नहीं चल सकता । उस तरह शिक्षार्थीके श्रमको कम करना और जंगी जहाजकी तोपोंको फेककर उसे हलकी और तेज चलनेवाली बनाना बराबर है। शिक्षार्थीका श्रम कम करनेके लिए आवश्यक है कि समझनेके विषयकी विशदरूपले व्याख्या की जाय और प्रयोजनके अनुसार व्याख्याकी वस्तु या उसकी प्रतिमूर्ति शिक्षा के सामने उपस्थित की जाय । शिक्षाका विषय अगर कोई कार्य हो तो उस कार्यको सहजमें सम्पन्न करनकी राह दिखा देनी चाहिए। किसी पाठका अभ्यास सहजमें करनेके लिए , जिससे वह पाठ सहजमें याद रहे इस तरहका इशारा छात्रको बता देना चाहिए। दो-एक दृष्टान्तोंके द्वारा ये बातें अधिक स्पष्ट हो सकती हैं। समझनेका विषय विशद व्याख्याके द्वारा कितना सहज कर दिया जासकता है यह बात नीचे लिखे दृष्टान्तसे स्पष्ट मालूम हो जायगी। किसी पात्रमें क-संख्यक भिन्न भिन्न क्षुद्रवस्तु रहने पर, उससे प्रतिवार खसंख्यक वस्तुकी भिन्न रूपसे संगृहीत समष्टि लेनेसे , जितनी जुदी जुदी तरहकी समष्टि होंगी , प्रतिवार ( क-ख) संख्यक वस्तु लेने पर भी ठीक उतनी ही जुद्दी जुदी तरहकी समष्टि होंगी। यह बीजगणितके मिश्रणअध्यायका एक तत्त्व है , और प्रमाणके द्वारा यह साबित किया जासकता है। किन्तु बीजगणित न पढ़ कर भी समझा जासकता है कि जितनी बार ख-संख्यक वस्तु ली जायगी उतनी ही बार (क-ख) संख्यक वस्तु पात्रमें पड़ी
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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