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________________ १३० ज्ञान और कर्म । [प्रथम भाग यह पद्धति फ्राबेलका किण्डरगार्टन (अर्थात् बालोद्यान ) इस नामसे पुकारी जाती है। वहाँ स्कूलकी गिनती बालकोंके क्रीडावनमें की जाती है । मोटे तौर पर यह पद्धति बुरी नहीं है। किन्तु वह अब क्रमशः इतने सूक्ष्म नियमोंसे भर गई है कि उसके द्वारा शिक्षा देनेका कार्य सुखकर न होकर कष्टकर ही हो उठता है। शिक्षाकार्यको सुखकर करनेके लिए पहले तो विद्यार्थीको मारना या डराना धमकाना छोड़कर उसका आदर करना और उसे उत्साह देना उचित है। दूसरे, विद्यार्थीको इसका कुछ आभास देना चाहिए कि शिक्षाके द्वारा उसका उपकार होगा। तीसरे, शिक्षाका विषय, 'मीठी भाषामें, चित्तरञ्जन करनेवाले उदाहरण और सुन्दर चित्रोंके द्वारा समुज्ज्वल करके, इस तरह वर्णन करना चाहिए कि विद्यार्थीका हृदय उसकी ओर स्वयं ही आकृष्ट हो। चौथे, शिक्षाको एक असाधारण और दुरूह विषय समझकर गंभीर भावसे विद्या के आगे मत उपस्थित करो। शिक्षा भी आहार-विहारादि सामान्य सहज नित्यकर्मकी तरह और एक सुखदायक काम है, यों समझ कर आनन्दके साथ बालकको पढ़ने-लिखनेके काममें लगाना चाहिए । शिक्षा बड़ा विषय और भक्तिका विषय है, इसमें सन्देह नहीं, और उसे खेलका विषय कह कर छोटा करनेका हमारा उद्देश्य नहीं है। किन्तु स्मरण रहे, भयसे सच्ची भक्ति नहीं होती, प्यार और स्नेहसे ही भक्तिकी उत्पत्ति होती है। पिता-माता देवस्वरूप हैं। किन्तु बालक पहले स्नेहके साथ उनकी गोदमें चढ़ना सीखकर बादको भक्तिभावसे उनके चरणों में प्रणाम करनेके योग्य होता है। (४) शिक्षाप्रणालीकी चौथी बात यह है कि शिक्षार्थीकी शक्तिके अनुसार उसे शिक्षा देनी चाहिए। पहले तो छात्रके पाठ पढ़नेके समय और शक्तिके ऊपर दृष्टि रखकर पाठका परिणाम निर्दिष्ट करना उचित है । जैसे अतिभोजन शरीरको पुष्ट नहीं करता, वैसे ही अधिक पढ़नेसे मन भी पुष्ट नहीं होता। किन्तु दुःख और भाश्चर्यका विषय यह है कि ऐसी एक सहज और मोटी बात भी अक्सर शिक्षक और छात्रोंके अभिभावक लोग भूल जाते हैं । बहुत लोग समझते हैं, जितने अधिक पुस्तकोंके पत्रे उलटे गये उतना ही अधिक पढ़ना लिखना हुआ। यह कोई नहीं सोचता कि जो विद्यार्थीने पढ़ा उसका मर्म भी वह समझा या नहीं, और एक एक नई बातका मर्मग्रहण करनेमें शिक्षार्थीको कितनी बार
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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