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________________ ११० ज्ञान और कर्म। [प्रथम भाग केवल सुबुद्धिकी कल्पनामात्र हैं, या यथार्थ तत्त्वमूलक हैं, इस सम्बन्धमें बहुत कुछ सन्देह रह सकता है। चाहे जो हो, जरायुमें स्थित नरदेहका क्रमशः परिवर्तित रूप और निम्न श्रेणी में स्थित जीवदेहका क्रमशः आकारभेद, इन दोनों में अद्भुत सादृश्य है, और वह विशेषरूपसे अनुशीलनके योग्य है। जीवविज्ञानका और एक विचित्र आविष्कार यह है कि अनेक जीवजगके लिए हितकारी और अहितकारी कार्य कीटाणुपुञ्जके द्वारा संपन्न होते हैं। जैसे, उद्भिद् (पेड़-लता) के बढ़नके लिए खाद तैयार करना, जन्तुके आहारको पचाने में सहायता करना आदि हितके कार्य हैं, और यक्ष्मा (तपेदिक ), विसूचिका (हैजा) आदि उत्कट रोग पैदा करना इत्यादि अहितके कार्य हैं। कीटाणुतत्त्व जीवविज्ञानका एक प्रधान विभाग है, और उसके अनुशीलनसे कीटाणुओंसे होनेवाले हितकर कार्योंकी वृद्धि और अहितकर कार्योंका हास हो सकता है। यह कहनेकी विशेष आवश्यकता नहीं कि जीवविज्ञानका एक विभाग, चिकित्साशास्त्रअति प्रयोजनीय विद्या है, और उसका कुछ ज्ञान हरएक मनुव्यको होना चाहिए। नैतिक अर्थात् जीवके सज्ञानकार्यविषयक विज्ञानके विभागमें सबसे पहले भाषा साहित्य और शिल्पविज्ञानका उल्लेख किया गया है। वास्तवमें भाषा सज्ञान जीवकी एक अद्भुत सष्टि है, और यद्यपि भाषाके विना सोचनेका काम चल सकता है या नहीं, इसके सम्बन्धमें पहले ही कहा जा चुका है कि मतभेद है, और उसकी यहाँ पर फिर आलोचना करना निष्प्रयोजन है, किन्तु यह बात सभीको स्वीकार करनी होगी कि बिना भाषाके दर्शन-विज्ञान आदिकी चर्चा और ज्ञानका प्रचार अत्यन्त दुरूह होता । भाषाकी सृष्टि किस तरह हुई, इस प्रश्नका उत्तर देना सहज नहीं है । इस सम्बन्धमें बुद्धिमानों और विद्वानोंने अनेक मत प्रकट किये हैं। भाषाकी उन्नति और अवनति किस नियमके अधीन है और नई भाषा किस तरह सहजमें सीखी जा सकती है, इस सम्बन्धमें भी बहुत मतभेद है। किन्तु इन दोनों विषयोंका अनुशीलन बराबर सदासे हो रहा है, और वह कर्मक्षेत्रमें अत्यन्त आवश्यक भी है। मनुप्यके स्वभावसिद्ध सौन्दर्यानुरागने सुन्दर भावोंको सुन्दर भाषामें और सुन्दर चित्र आदिमें प्रकट करनेकी चेष्टा करके साहित्य और शिल्पकी सृष्टि की
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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