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________________ छठा अध्याय ] ज्ञान-लाभके उपाय । १११ है। साहित्य और शिल्पसे हम अनेक प्रकारकी जानकारी प्राप्त करते हैं, उनसे हमें अनेक सत्कर्म करनेकी प्रेरणा मिलती है। वह साहित्य और शिल्प अगर कुरुचिपूर्ण रचना हुई तो उसके द्वारा अनेक समय हम कुमार्गगामी भी हो सकते हैं और कुकर्म भी कर सकते हैं। इतिहास मनुष्यके सज्ञान कार्यका विवरण है। किस जातिने कब कहाँ क्या किया है, केवल इसीकी सूची रखना इतिहासका उद्देश्य नहीं है । उन सब कार्योंका कारण क्या है, और उनका फल क्या हुआ, और भिन्न भिन्न जातियोंका अभ्युत्थान, उन्नति और अवनति किस नियमसे हुई है, मनुष्यजाति किस नियमसे किस मार्गमें आगे बढ़ रही है, इन सब तत्त्वोंका निर्णय करना ही इतिहासका उद्देश्य है। __ मनुष्य अकेले नहीं रह सकता; समाज बाँधकर रहता है । समाज जातिसे छोटा और परिवारसे बड़ा होता है । अनेक व्यक्तियोंको लेकर एक परिवारका संगठन होता है, अनेक परिवार मिलकर एक समाज होता है, और अनेक समाज मिलकर एक जाति बनती है। पारिवारिक बन्धनका मूल विवाह है, जातीय बन्धनका मूल एक भाषा, एक धर्म और एक राजाके अधीन होना, अथवा कमसे कम इन तीनोंमेंसे एक बात है। सामाजिक बन्धनका मूल है समाजबद्ध व्यक्तियोंकी इच्छा । परन्तु जैसे कोई भी व्यक्ति संपूर्णरूपसे अपनी इच्छाके अधीन नहीं है-सभी राजा या राजशक्तिके द्वारा स्थापित नियमोंके अधीन होते हैं, वैसे ही समाज भी उसी नियमके अधीन हुआ करता है। समाजका जो वन्धन है वह उसमें बँधे हुए व्यक्तियोंकी अपनी इच्छासे उत्पन्न है, पराई इच्छाके अधीन नहीं है। इसी कारण समाजका इतना आदर है और वह इतना हितकर है । समाजके शासनको एक प्रकारका आत्मशासन कहें तो कह सकते हैं। वह कठोर नहीं है, और उसके द्वारा लोग अनेक अन्याय कार्योंसे रोके जाते हैं। कोई कोई इस मर्मको न समझकर समाजका अपमान करते हैं, और आईन-अदालतके शासनको छोड़कर और किसी शासनको मानना नहीं चाहते । वे अत्यन्त भ्रान्त हैं । समाजनीति अति विचित्र विषय है । समाज जब समाजबद्ध व्यक्तियोंकी इच्छाके ऊपर प्रतिष्ठित है, तब किसी भी समाजकी नीति अवश्य ही उस समाजके व्यक्तियोंकी या उनमेंसे अधिकांशकी प्रकट या अप्रकट इच्छाके द्वारा
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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