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________________ छठा अध्याय ] ज्ञान-लाभके उपाय । १०९ करती है। उसी अनुसन्धानका फल यह है कि रोग आदि अनिष्टसे देहको बचानेके उपाय निकलते हैं, और उद्भिद् पदाथाकी उन्नति करके अधिक मात्रामें खानेके पदार्थ पैदा किये जाते हैं। जीवविज्ञान एक अद्भुत तत्त्व स्थापित करनेके लिए प्रयास कर रहा है। वह तत्त्व यह है कि एक निम्नतम श्रेणीके जीवसे अवस्थाभेदके अनुसार उसके अनेक रूप बदलते क्रमशः उच्च और उच्चतर अनेक जातिके जीवोंकी सृष्टि हुई है। इस तत्त्वके अनुयायी मतको क्रमविकास या विवर्त्तवाद कहते हैं। जीवतत्त्वके ज्ञाता पण्डितोंने इस मतको प्रमाणित करने की चेष्टा की है __ और कर रहे हैं। वे लोग कई प्रमाण देते हैं। मनुष्यके भ्रूग-शरीरके आरं भसे लेकर पूर्ण अवस्था प्राप्त होने तक, जरायुमें, क्रमशः आकारमें जो सब परिवर्तन होते हैं वे भी उक्त मतके समर्थनमें प्रमाण-स्वरूप दिखलाये जाते हैं । जरायुमें स्थित मनुष्य-शरीरके उन सब भिन्न भिन्न आकारों के साथ निम्न श्रेणीके भिन्न भिन्न जातिके जीवोंकी देहके आकारका अद्भुत सादृश्य है। यह सादृश्य देख कर जीवविज्ञान इस सिद्धान्त पर पहुंचना चाहता है कि जातिगत रूपपरिवर्तन और भ्रूणावस्थामें होनेवाला व्यक्तिगत रूपपरिवर्तन एक ही नियमके अधीन है। अर्थात् जिस प्रकारके परिवर्तन द्वारा जरायुके भीतर प्रथम अपूर्णावस्थाके आकारसे लेकर अन्तको पूर्णावस्थाके मनुष्यका आकार उत्पन्न होता है, वैसे ही परिवर्तनके द्वारा जगत्में निम्न जाति के जीवले मानवजातिकी उत्पत्ति हुई है (१)। कोई कोई कह सकते हैं कि पौराणिक दश अवतारोंका तत्त्व जीवविज्ञानकी इस बातको पुष्ट करता है। कारण, प्रथम छः अवतार मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह, वामन और परशुराम हैं, और इनके क्रम पर ध्यान देनेसे देखा जाता है कि निम्नसे उच्च और उच्चसे उच्चतर जीवकी परिणति हुई है। जैसे, जलचर पैर आदि अंगोंसे हीन मछलीसे जल-स्थल दोनों में चलनेवाले और एक प्रकारके हस्त-पद-युक्त कछुआ, जलस्थलचर कछुएसे स्थलचर चतुष्पद शूकर, शूकरसे आधा पशु और आधा नर नृसिंह, नृसिंहसे वामन अर्थात् क्षुद्र नर और अन्तको पूर्ण नरदेहधारी परशुराम अवतारकी उत्पत्ति हुई है। तथापि ये सब बातें - (१) Hacckel's Evolution of Man देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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