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________________ ९२ ज्ञान और कर्म । [ प्रथम भाग आत्माके संपूर्ण स्वरूपका ज्ञान नहीं उत्पन्न होगा, अर्थात् जबतक हम यह न जान सकेंगे कि इच्छा और क्रिया किस तरह आत्मामें निबद्ध है, तबतक इस प्रश्नका कोई उत्तर पानेकी संभावना नहीं है । उक्त सहज उत्तरके ऊपर और एक बात पूछी जा सकती है कि " इच्छा हुई ही क्यों ? ", और इसका उत्तर हम यह पाते हैं कि “ इस पुस्तकके इस अध्यायमें जिस विषयकी व्याख्या करना सोचा है, वर्तमान आलोचना उसका अंग जान पड़ा, इसीसे यह इच्छा हुई । " किन्तु इसके ऊपर और भी प्रश्न हो सकता है कि " वर्तमान आलोचना उसका अंग ही क्यों जान पड़ी ? ' इस प्रश्नका उत्तर बिल्कुल सहज नहीं है । किन्तु इस सम्बन्धमें और अधिक · कहनेका प्रयोजन नहीं है । और एक प्रश्न उठाकर देखा जाय । 66 ऊपर जहाँ पर मैं प्रश्नका उत्तर देनेसे रुका वहाँ पर क्यों रुका ? " इसका उत्तर यह कहकर कि “ इस सम्बन्धमें और अधिक कहनेका प्रयोजन नहीं है, " एक प्रकारसे मैंने ऊपर ही दे दिया है । किन्तु उसके बाद प्रश्न उठता है कि " यही मैंने क्यों सोचा ? " इस प्रश्नका उत्तर थोड़ीसी बातों में नहीं दिया जा सकता, और इसके उत्तर में जितनी बातें कहना उचित हैं, जान पड़ता है, उन सबको मैं ठीक करके कह नहीं सकता । " और अधिक बातें कहनेका प्रयोजन नहीं है " यह बात जब मैंने कही, तब उस समय किन कार णोंसे मैंने ऐसा सोचा था, इस समय स्मरण करके उन सबका वर्णन करना कठिन है । क्योंकि, जान पड़ता है, वे सब कारण उस समय मनमें स्पष्टरूपसे प्रकट और आलोचित नहीं हुए थे, और इस भयसे सोच विचारकर मैं जिन कारणोंको ठीक करूँगा वे ही कारण उस समय मेरे खयालमें आये थे, यह ठीक नही कहा जा सकता । अब बहिर्जगत्-विषयक दो-एक दृष्टान्त दूँगा । " मेरे पेंसिल चलानेसे कागजमें अक्षर क्यों खिंच जाते हैं ? " इसका सहज उत्तर यह होगा कि " मैं अक्षर अंकित करनेके उपयोगी ढंगसे हाथ चलाता हूँ, इसी कारण मेरे हाथकी पेंसिल अक्षर अंकित करती है । " किन्तु यह उत्तर काफी नहीं है । हाथका चलाना मेरी इच्छा कार्य और इच्छित अक्षर - लिखनके उपयोगी हो सकता है, पेंसिलकी गति भी उसके अनुरूप हो सकती है, यहाँतक स्वीकार करने पर भी, प्रश्न उठता है कि " पेंसिलकी गतिसे कागज पर काले दाग क्यों पड़ते
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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