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________________ पाँचवाँ अध्याय ] ज्ञानकी सीमा। ९३ हैं ? " यदि कहा जाय कि पेंसिलके भीतर जो काले रंगका पदार्थ है, कागज पर उसके घिसनेसे दाग पड़ते हैं, तो उस पर यह प्रश्न उठेगा कि “घिसे जानेसे दाग क्यों पड़ते हैं ? " कोई पाठक इस प्रश्नको वृथा न समझें । सब काले रंगकी चीजें कागज पर घिसनेसे दाग नहीं पड़ते । अगर कहा जाय.. पेंसिल नर्म है, घिसनेसे क्षय होती है, और उसके अलग हुए अंश कागजमें लगनेसे उस पर दाग पड़ते हैं, तो कमसे कम दो और कठिन प्रश्न उपस्थित होते हैं । यथा-" घिसनेसे पेंसिलके क्षुद्र क्षुद्र अंश क्यों उससे अलग होते हैं ? " और " वे कागजहीमें क्यों लग जाते हैं ? " इन दोनों प्रश्नोंका उत्तर जबतक हम नहीं दे सकते, तबतक पेंसिल और कागजके आणविक गठन और आणविक आकर्षणके स्वरूपका ज्ञान हमें नहीं होता। और एक दृष्टान्त लीजिए । “ डंठल टूटकर कर गिरा हुआ फल ऊपर न उठकर नीचे ही क्यों गिरता है ? " इस प्रश्नका सहज उत्तर यह है कि "वह पृथ्वीके माध्याकर्षणसे नीचेकी ओर आकृष्ट होता है, इसीसे ऐसा होता है।'' मगर यह उत्तर यथेष्ट नहीं है । इसके साथ ही प्रश्न उठता है, “ पृथ्वी फलको क्यों खींचती है ? " इसके उत्तरमें अगर यह कहा जाय कि प्रत्येक वस्तुका दूसरी वस्तुको अपनी ओर खींचना जड़का धर्म है, " तो फिर प्रश्न. होगा कि " जड़का ऐसा धर्म क्यों है ? " जबतक हम जड़के भीतरी गठन और अन्तनिर्हित शक्तिके स्वरूपको नहीं जान पाते, तबतक इस अन्तिम प्रश्नका उत्तर देना सर्वथा असाध्य है। माध्याकर्षण-नियमका आविष्कार करनेवाले न्यूटनने यद्यपि यह निरूपित कर दिया है कि वह आकर्षण वस्तुकी गतिको किस नियमसे परिवर्तित करता है, किन्तु इस प्रश्नका कुछ विशेष उत्तर नहीं दिया कि एक वस्तु अन्य वस्तुको क्यों खींचती है । बल्कि उन्होंने ऐसा आभास दिया है कि आकर्षणके नियमको गणितका नियम समझकर गतिके विषयमें आलोचना करनेसे अनेक तत्त्वोंतक पहुँच हो जाती है; किन्तु आकर्षण क्यों वैसे नियमसे चलता है, यह दूसरी बात है (१)। ___ ऊपर जो कहा गया, उससे समझमें आता है कि हमारा जगतकी वस्तुओं और विषयोंके स्वरूप और कारणका ज्ञान अत्यन्त असंपूर्ण है, और वर्तमान देहयुक्त अवस्थामें असंपूर्ण ही रहेगा। (१) Newton's principia Bk. I, Sec. I, Def. VIII, and Sec.. XI, Scholiun, Davis's Edition Vol. I, pages 6 and 174 देखो।
SR No.010191
Book TitleGyan aur Karm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupnarayan Pandey
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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