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________________ ( ६५ } "कही तुम्हारे वचनो मे माया चारी तो नही है ?" "नही नही । भरत जी के आगे मै कोई माया चारी नही कर सकता ।" " तव आप जा सकते हो। पर याद रखना हम ज्यादा प्रतीक्षा नही करेंगे ।" "अजी सेनापतिजी | मैं अभी गया और अभी आया ।" 1 वह व्यन्तर देव वहां से हवा हो गया । भरत महाराज विश्राम कर गहे थे । उनके रमणीक डेरे के द्वार पर सैनिक अविरल चौकन्ना हो कर पहरा दे रहा था । देव ने उसे देखा । देव चाहता तो उस पहरेदार को मुट्ठी मे बन्द कर सकता था पर मर्यादा की श्रान समझ कर वह पहरेदार के सामने आकर खड़ा हो गया । पहरेदार ने उस अपरिचित मानव को देखा तो चौकते हुए पूछा.. --- "कोन हो तुम ? + "मैं भरत महाराज से मिलना चाहता हूँ । "यह मेरे प्रश्न का उत्तर नही है । मैं पूछता कि तुम कौन हो ? "मैं इस पर्वत राज कारक्षक है। मैं इसी क्षण भरत महाराज से मिलना चाहूंगा। "ठहरो । पहरेदार ने ताली बजाई । अन्दर से एक सैनिक आया । सैनिक से पहरेदार ने कहा- "महाराज श्री से निवेदन करो कि इस पर्वतराज का रक्षक आपके दशनो का इच्छुक हो आपके चरण छूना चाहता है । सैनिक अन्दर गया और कुछ क्षणो के पश्चात् ही आ गया । उसने सकेत से कहा--"दर्शन कर सकते है ? देव दर बढा | रमणीक और उत्तम शैया पर भरत एक करवट लिये विश्राम कर रहे थे ज्यों ही देव ने अन्दर प्रवेश किया कि उसने भरत महाराज के अभिवादन के साथ दर्शन किये और f
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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