SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६) सेवक महाराज भरत ने महाराज भरत ने सकेत वाद्य की ध्वनि प्रकट की और एक सेवक उपस्थित हुमा । सेवक नम्रता से मस्तक झुकाए अाज्ञा पाने की जिज्ञासा रखते हुए खडा रह गया। 'मनी जी को शीघ्र उपस्थित होने के लिए हमारा आदेश पहुचानो। 'जैसी थाना महाराज।' सेवक चला गया और कुछ ही समय पश्चात् मत्री अपने स्थान से महाराज भरत का आदेश पा चले। रास्ते भर सोचते रहे कि ग्राज इस समय मे न्यो याद किया है ? इस समय तो महाराज ने कभी भी याद नहीं किया । उहापोह मे उलझते सुलभते मत्री महोदय ने महाराज भरत के विश्राम कक्ष में प्रवेश किया । सादर अभिवादन करने के पश्चात्-महाराज भरत द्वारा सदेतिक स्थान पर बैठ गए। 'क्या आज्ञा है महाराज ?' 'मत्री जी । महारानी जी जैसा आदेश दे उमी के अनुसार आज का कार्य क्रम बनाले।' ___ 'मैं क्या आदेश दे सकूगी "प्रापही ही आदेश दीजिएगा।'' बीच मे ही महारानी ने मुस्कराते हुए कहा । मंत्री को फिर व्याकुलता हुई कि कैसा आदेश है ? क्या वात है ? • तभी भरत ने कहा सुनिए मत्रीवर ! अाज याचको को जी भर दान दिया जाय। मन्दिरो मे पूजा भजन आदि किया जाय और कोई भी अयोध्या मे भूखा न रहने पाये। ___'ऐसा ही होगा प्रभो ।' मत्री देखता का देखता ही रह गया। उसने एक शान्ति की सास ली और जैसा भी वादेश था उसे पत्र पर अकित किया । तथा जैसा आदेश मिला था उसी के अनुसार कार्य भी दिया।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy